कलम से____
21st June, 2014
(Specially for Chadda ji, my old colleague of ITILtd., on his request. You requested one but I am posting three poems for you as desired. You select which one suits you.)
कविता नम्बर 1
कैसे करते हो मोहब्बत को बयां चंद लफ्जों में,
घुटनों पर झुकके हाथ ही नहीं साथ मागता हूँ मैं,
तेरी गरम सासों के मर्म का अहसास है मुझे,
तेरी हर आह पर निकलती है जान मेरी,
तेरे इन सुर्ख लवों छूने को बेकरार हूँ मैं,
तेरी हर अदा पर कुरबान हूँ मैं,
हालात जब यहां तक जा है पहुंचे,
एक तुम हो जो पूछते हो मुझसे,
क्या मुझे मोहब्बत है तुमसे,
मैं आज कहता हूँ है मुझे मोहब्बत तुमसे।
ऐसे करता हूं वयां मैं अपनी मोहब्बत को चंद लफ्जों में।
कविता नम्बर 2
कहते कहते, वह जवां पर आ ही गया,
इजहारे मोहब्बत यूं हो गया ।
चंद अल्फाजों ने वह काम कर दिया,
जो नजरें चार होने से भी न हुआ।
कौन कहता है,
होता है आसां बहुत, इजहारे मोहब्बत का,
चंद अलफाज, निगाहों ने निगाहों से कह दिए,
यूं, इजहारे मोहब्बत हो गया ।
चले दूर आते हैं, मेरे कहने भर से,
इतना ऐतबार, उन्हें मुझपे हो गया,
दुआ मांगता हूं, मैं खुदा से,
न टूटे रिश्ता, जो हमारे बीच बन गया।
कौन कहता है, था इतना आसां,
इजहारे मोहब्बत, बडी मुश्किल से हुआ।
कविता नम्बर 3
कौन कहता है कि इजहारे मोहब्बत आसां होती है,
मैं तो रोज मिलता हूँ फिर भी आखं नहीं मिलती है।
नजर नजर से मिले जिस दिन और नजर झुक जाये,
समझ लेना उस दिन तुमसे मोहब्बत हो गई है उसे।
जान ले यह कि मोहब्बत हौले हौले जवां होती है,
इजहारे मोहब्बत लफ्जों में नहीं नजरों से बयां होती है।
चंद अल्फाज क्या करेंगे जो एक नजर करती है,
कौन कहता है कि इजहारे मोहब्बत आसां होती है।
चांद जब संगमरमरी लिवास में धीरे से जमीन पर उतरे,
उनके आने जाने का सबब न कोई मुझसे पूछे,
पहलू में हों वह बैठे निहारते हुए भीगी नजरों से,
कह दूँगा कि बेपनाह मोहब्बत है मुझे उनसे,
ऐसे हो जाएगी इजहारे मोहब्बत बयां मुझसे,
उलझन में हूं सोचता हूँ हर रोज मैं कहूँगा कैसे,
डर है कि कहने से बात बिगड न जाय कहीं, कैसे कह दूँ कि हो गई तुमसे मोहब्बत है मुझे,
उलझन है कि बडती जाए है ये न हो पाएगा मुझसे,
कौन कहता है कि इजहारे मोहब्बत आसां होती है। — with आशीष कैलाश तिवारी and 48 others.
21st June, 2014
(Specially for Chadda ji, my old colleague of ITILtd., on his request. You requested one but I am posting three poems for you as desired. You select which one suits you.)
कविता नम्बर 1
कैसे करते हो मोहब्बत को बयां चंद लफ्जों में,
घुटनों पर झुकके हाथ ही नहीं साथ मागता हूँ मैं,
तेरी गरम सासों के मर्म का अहसास है मुझे,
तेरी हर आह पर निकलती है जान मेरी,
तेरे इन सुर्ख लवों छूने को बेकरार हूँ मैं,
तेरी हर अदा पर कुरबान हूँ मैं,
हालात जब यहां तक जा है पहुंचे,
एक तुम हो जो पूछते हो मुझसे,
क्या मुझे मोहब्बत है तुमसे,
मैं आज कहता हूँ है मुझे मोहब्बत तुमसे।
ऐसे करता हूं वयां मैं अपनी मोहब्बत को चंद लफ्जों में।
कविता नम्बर 2
कहते कहते, वह जवां पर आ ही गया,
इजहारे मोहब्बत यूं हो गया ।
चंद अल्फाजों ने वह काम कर दिया,
जो नजरें चार होने से भी न हुआ।
कौन कहता है,
होता है आसां बहुत, इजहारे मोहब्बत का,
चंद अलफाज, निगाहों ने निगाहों से कह दिए,
यूं, इजहारे मोहब्बत हो गया ।
चले दूर आते हैं, मेरे कहने भर से,
इतना ऐतबार, उन्हें मुझपे हो गया,
दुआ मांगता हूं, मैं खुदा से,
न टूटे रिश्ता, जो हमारे बीच बन गया।
कौन कहता है, था इतना आसां,
इजहारे मोहब्बत, बडी मुश्किल से हुआ।
कविता नम्बर 3
कौन कहता है कि इजहारे मोहब्बत आसां होती है,
मैं तो रोज मिलता हूँ फिर भी आखं नहीं मिलती है।
नजर नजर से मिले जिस दिन और नजर झुक जाये,
समझ लेना उस दिन तुमसे मोहब्बत हो गई है उसे।
जान ले यह कि मोहब्बत हौले हौले जवां होती है,
इजहारे मोहब्बत लफ्जों में नहीं नजरों से बयां होती है।
चंद अल्फाज क्या करेंगे जो एक नजर करती है,
कौन कहता है कि इजहारे मोहब्बत आसां होती है।
चांद जब संगमरमरी लिवास में धीरे से जमीन पर उतरे,
उनके आने जाने का सबब न कोई मुझसे पूछे,
पहलू में हों वह बैठे निहारते हुए भीगी नजरों से,
कह दूँगा कि बेपनाह मोहब्बत है मुझे उनसे,
ऐसे हो जाएगी इजहारे मोहब्बत बयां मुझसे,
उलझन में हूं सोचता हूँ हर रोज मैं कहूँगा कैसे,
डर है कि कहने से बात बिगड न जाय कहीं, कैसे कह दूँ कि हो गई तुमसे मोहब्बत है मुझे,
उलझन है कि बडती जाए है ये न हो पाएगा मुझसे,
कौन कहता है कि इजहारे मोहब्बत आसां होती है। — with आशीष कैलाश तिवारी and 48 others.

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