कुछ मेरी, कुछ तेरी !
Monday, July 14, 2014
मैंने सुबह को आते देखा है !
मैंने सुबह को आते देखा है ,
मैंने शाम को ढलते देखा है ,
उम्र की खिड़की पर रुक कर,
मैंने जिन्दगी को गुजरते देखा है ....
— with
S.p. Singh
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आशीष कैलाश तिवारी
,
Sp Tripathi
,
Arun Kumar Singh
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Suresh Chadha
July 11 at 11:56am
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Ramaa Singh
Thanks chadha ji
July 11 at 11:58am
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Puneet Chowdhary
Very nice lines mam
July 11 at 12:05pm
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Arun Kumar Singh
July 11 at 12:30pm
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Ram Saran Singh
बड़ा सुंदर जीवन दर्शन लिखा है आपने । ज़िंदगी भी सुबह-शाम की तरह तिल तिल गुज़र रही है और फिर इसकी चरम परिणति होती है । धन्यवाद ।
July 11 at 12:31pm
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Anjani Srivastava
जीवन में मुस्कान बनी रहे....... दिल के छालों को कोई शायरी कहे तो दर्द नहीं होता; तक़लीफ़ तो तब होती है जब लोग वाह-वाह करते है........
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July 11 at 12:59pm
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Meenakshi Agrawal
Nice lines
July 11 at 1:13pm
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Rajan Varma
'उम्र की खिड़की पर रूक कर, मैंने िज़न्दगी को गुज़रते देखा है'- सुन्दर उद्गार हैं- ज़िन्दगी सरकने का ग़र एहसास हो इन्सान को तो समय रहते वह इस अमूल्य जीवन के मूल लक्ष्य को ढूँढने, समझने अौर हासिल करने का प्रयास कर सकता है; अौर मेरे जैसे ग़ाफ़िल इसां जो सिर्फ़ मौज-मस्ति को ही जीवन का आदि-अंत मान लेते हैं उन्हे अंत समय पछताना पड़ता है- कि नाहक ही ५०-६०-७० साल की आयु जानवर की मानिंद बिता कर चल दिये संसार से-
July 11 at 4:55pm
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Kalpana Chaturvedi
सुबह होती है शाम होती है जिन्दगी यूं ही तमाम होती है।
July 11 at 7:23pm
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Dinesh Sinha
Really its Marvellous.
July 11 at 9:49pm
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S.p. Singh
सभी बन्धु बान्धवों को गुरु पूर्णिमा के पावन अवसर पर शत शत नमन।
July 12 at 11:32am
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Nitish Chaurasiya
वाह बहुत सुन्दर रचना...
July 12 at 12:14pm
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Arun Kumar Singh
Wah bahut sunder
Yesterday at 10:51am
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