कलम से ....
इस छोटी सी कविता के माध्यम से मै अपनी मनकापुर प्रवास को और उन सभी महानभावौ को नमन करता हू जिनकी सहभागिता का अवसर मिला ।
जो लोग मनकापुर से अवगत है ऊनको स्मरण होगा कि मनुवर नदी पर एक पुराना causeway हुआ करता था ऊसके एक तरफ महाराज अमिबकेशवर प्रताप सिंह जी का महल (जो कालातर मे फ्रेनच क्लब रहा) और एक ओर महाराज रघुराज सिंह जी की क्षत्री है।
ए भाव मेरे मनकापुर प्रवास के दौरान के ही है, आशा है कि पसंद आयेगे।
'मनुवर किनारे कोई रहता है,
सदियों से, आजकल की बात नहींहै,
मेरा राजकुमार,
राजप्रसाद से निकल,
चाँदनी तले,
मिलन की आस लिये,
हो सफेद घोड़े पर सवार,
मेरे सपने मे जो आता है,
मनुवर किनारे कोई रहता है।
कल ही की तो बात है,
लाये थे ठठरी पर लाद,
काधे पर लेकर,
पुल के उस पार से,
मेरे सपनों के संसार से,
कुछ देर रुके, रोये पीटे,
अग्नि को सौंप कर,
सोचकर, वह तो पंचततव मै मिल गया,
अब क्या वो आयेगा ?
कोई नहीं जानता था,
वह आयेगा,
शभ्रधवल वस्त्रौ मै,
हो सफेद घोड़े पर सवार,
मिलन को तरसता,
मेरा राजकुमार,
मनुवर किनारे जो रहता है।'
इस छोटी सी कविता के माध्यम से मै अपनी मनकापुर प्रवास को और उन सभी महानभावौ को नमन करता हू जिनकी सहभागिता का अवसर मिला ।
जो लोग मनकापुर से अवगत है ऊनको स्मरण होगा कि मनुवर नदी पर एक पुराना causeway हुआ करता था ऊसके एक तरफ महाराज अमिबकेशवर प्रताप सिंह जी का महल (जो कालातर मे फ्रेनच क्लब रहा) और एक ओर महाराज रघुराज सिंह जी की क्षत्री है।
ए भाव मेरे मनकापुर प्रवास के दौरान के ही है, आशा है कि पसंद आयेगे।
'मनुवर किनारे कोई रहता है,
सदियों से, आजकल की बात नहींहै,
मेरा राजकुमार,
राजप्रसाद से निकल,
चाँदनी तले,
मिलन की आस लिये,
हो सफेद घोड़े पर सवार,
मेरे सपने मे जो आता है,
मनुवर किनारे कोई रहता है।
कल ही की तो बात है,
लाये थे ठठरी पर लाद,
काधे पर लेकर,
पुल के उस पार से,
मेरे सपनों के संसार से,
कुछ देर रुके, रोये पीटे,
अग्नि को सौंप कर,
सोचकर, वह तो पंचततव मै मिल गया,
अब क्या वो आयेगा ?
कोई नहीं जानता था,
वह आयेगा,
शभ्रधवल वस्त्रौ मै,
हो सफेद घोड़े पर सवार,
मिलन को तरसता,
मेरा राजकुमार,
मनुवर किनारे जो रहता है।'
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