कलम से _ _ _ _
13th July, 2014
सुबह सुबह
का
वो जल्दी
उठना,
वहाँ
पहुंचना
जहाँ,
मेरे महबूब
का
होगा आना।
होंठ
को दबाकर
उनका
मुस्कुराना,
कुछ
था जलवा
उनका ऐसा
मेरा
उन पर
फिदा हो जाना।
भुलाया न जाए वो गुजारा जमाना,
होता था इश्क ऐसे मेरी जाने जाना।
http://1945spsingh.blogspot.in/2014/07/blog-post.html — with आशीष कैलाश तिवारी and 46 others.
13th July, 2014
सुबह सुबह
का
वो जल्दी
उठना,
वहाँ
पहुंचना
जहाँ,
मेरे महबूब
का
होगा आना।
होंठ
को दबाकर
उनका
मुस्कुराना,
कुछ
था जलवा
उनका ऐसा
मेरा
उन पर
फिदा हो जाना।
भुलाया न जाए वो गुजारा जमाना,
होता था इश्क ऐसे मेरी जाने जाना।
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