कलम से _ _ _ _
उनका मासूम चेहरा,
ख्वाबों में तो दिख जाता है,
ढूंढते रहते हैं रात दिन,
गली गलियारों में,
फिर भी कहीं नजर नहीं आता है।
हार नहीं मानूंगा,
ढूढं के जानूंगा,
क्यों दिख कर,
फिर कहीं छुप जाते हो,
बादलों से आकर,
बिन बरसे ही चले जाते हो,
न जाने फिर कहीं खो जाते हो।
आना ही होगा तुम्हें,
मुझे पाना ही होगा,
ठहरी सी जिंदगी पर,
नाम अपना लिखना होगा।
//surendrapalsingh//
गली गलियारों में,
फिर भी कहीं नजर नहीं आता है।
हार नहीं मानूंगा,
ढूढं के जानूंगा,
क्यों दिख कर,
फिर कहीं छुप जाते हो,
बादलों से आकर,
बिन बरसे ही चले जाते हो,
न जाने फिर कहीं खो जाते हो।
आना ही होगा तुम्हें,
मुझे पाना ही होगा,
ठहरी सी जिंदगी पर,
नाम अपना लिखना होगा।
//surendrapalsingh//
07152014
http://1945spsingh.blogspot.in/2014/07/blog-post.html
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