कलम से _ _ _ _
आते जाते
गली के इस कोने से उस कोने तक
निगाह एक जगह लगी रहती थी
वो खिडकी कब खुलेगी
उस दरवाजे से वो कब निकलेंगे।
ऐसा भी होता था
न कभी खिडकी
न कभी दरवाजा ही खुला करता था
समझ लेता था मैं कि वो नासाज हैं
या घर में किसी और की तबीयत खराब है।
इधर कुछ ऐसा हुआ
बहुत दिनों तक
कुछ न दिखा
न कोई रौनक
न कोई हलचल
मैं भीतर ही भीतर
बहुत बेचैन हुआ
पता जब किया तो
पता यह लगा
वो चले गये हैं दूसरे शहर
न लौटेगें इस रहगुजर।
सुन के
मैं सन्न रह गया
करता ही क्या
अफसोस में
हाथ मलता रह गया।
वो अचानक यूं चले गये
दुनियां मेरी वीरान कर गये
मानूंगा नहीं ढूढं ही लूगां
छिपे होगे चाहे तुम जहां
भक्त हूँ तुम्हारा
जाने न दूगां
तुम्हें इतने आसां...............................
//surendrapal singh//
07172014
http://1945spsingh.blogspot.in/2014/07/blog-post.html
and
http://spsinghamaur.blogspot.in/with आशीष कैलाश तिवारी and 45 others.
आते जाते
गली के इस कोने से उस कोने तक
निगाह एक जगह लगी रहती थी
वो खिडकी कब खुलेगी
उस दरवाजे से वो कब निकलेंगे।
ऐसा भी होता था
न कभी खिडकी
न कभी दरवाजा ही खुला करता था
समझ लेता था मैं कि वो नासाज हैं
या घर में किसी और की तबीयत खराब है।
इधर कुछ ऐसा हुआ
बहुत दिनों तक
कुछ न दिखा
न कोई रौनक
न कोई हलचल
मैं भीतर ही भीतर
बहुत बेचैन हुआ
पता जब किया तो
पता यह लगा
वो चले गये हैं दूसरे शहर
न लौटेगें इस रहगुजर।
सुन के
मैं सन्न रह गया
करता ही क्या
अफसोस में
हाथ मलता रह गया।
वो अचानक यूं चले गये
दुनियां मेरी वीरान कर गये
मानूंगा नहीं ढूढं ही लूगां
छिपे होगे चाहे तुम जहां
भक्त हूँ तुम्हारा
जाने न दूगां
तुम्हें इतने आसां...............................
//surendrapal singh//
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भवप्रणव सुन्दर प्रस्तुति।
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद उत्साह वर्धन के लिए महोदय।
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