कलम से____
सामने के घर में बहार आ गई
जो कोठी बंद पडी थी खुल गई।
बालकनी में आना जाना मेरा शुरू हो गया
पहले झाकंता भी न था उधर देखने लगा।
पूछा जब यह परिवर्तन कैसे हो गया
अदा से बोला पडोस मेरा जो भर गया।
अक्सर समाचार पत्र हम वहीं पढ़ते हैं
उनके आने जाने पर निगाह रखते हैं।
सुबह सुबह वो वहाँ नजर आ जाते हैं
शाम तक स्फूर्तिदायक बने रहते हैं।
शाम से ही हम वहां सवार रहते हैं
जालिम हैं जो कभी दिखाई नहीं देते हैं।
दिन और महीने ऐसे ही कटते जाते हैं
एक दिन अचानक वहां से चले जाते हैं।
हम अपनी जगह फिर वापस आ जाते हैं
दरवाजा बंद कर अपने घर में ही रहते हैं।
//surendrapal singh//
07 30 2014
http://1945spsingh.blogspot.in/
and
http://spsinghamaur.blogspot.in/झ — with Puneet Chowdhary.
सामने के घर में बहार आ गई
जो कोठी बंद पडी थी खुल गई।
बालकनी में आना जाना मेरा शुरू हो गया
पहले झाकंता भी न था उधर देखने लगा।
पूछा जब यह परिवर्तन कैसे हो गया
अदा से बोला पडोस मेरा जो भर गया।
अक्सर समाचार पत्र हम वहीं पढ़ते हैं
उनके आने जाने पर निगाह रखते हैं।
सुबह सुबह वो वहाँ नजर आ जाते हैं
शाम तक स्फूर्तिदायक बने रहते हैं।
शाम से ही हम वहां सवार रहते हैं
जालिम हैं जो कभी दिखाई नहीं देते हैं।
दिन और महीने ऐसे ही कटते जाते हैं
एक दिन अचानक वहां से चले जाते हैं।
हम अपनी जगह फिर वापस आ जाते हैं
दरवाजा बंद कर अपने घर में ही रहते हैं।
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