कलम से____
जीवन की संध्या में
कभी कभी आ जाना
पास होने का अहसास दिला जाना
हाथ कोमल नहीं रहे वैसे
थक गये हैं दर्द सहते सहते
हथेलियों में गरमाहट वैसी ही है
खुरखुराहट मुझे भी खलती है
चेहरे पर पडी झुर्रियां
अपनी कहानी कहती हैं
इतंजार न जाने किसका करतीं हैं।
आ जाते हो तुम तो दर्द कम हो जाता है
वरना परेशान जालिम बहुत करता है
गुजरे वक्त की याद कर अच्छा लगता है
मन कभी रोने को कभी हंसने को करता है।
//surendrapalsingh//
07 31 2014
http://1945spsingh.blogspot.in/
and
http://spsinghamaur.blogspot.in/ — with Rajan Varma.
जीवन की संध्या में
कभी कभी आ जाना
पास होने का अहसास दिला जाना
हाथ कोमल नहीं रहे वैसे
थक गये हैं दर्द सहते सहते
हथेलियों में गरमाहट वैसी ही है
खुरखुराहट मुझे भी खलती है
चेहरे पर पडी झुर्रियां
अपनी कहानी कहती हैं
इतंजार न जाने किसका करतीं हैं।
आ जाते हो तुम तो दर्द कम हो जाता है
वरना परेशान जालिम बहुत करता है
गुजरे वक्त की याद कर अच्छा लगता है
मन कभी रोने को कभी हंसने को करता है।
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