कलम से....
........आग धधकती रहे........
बटलोई की बनी उढद की दाल,
देशी घी मे लगा हींग का छौक,
चूलहे की बनी फूली-फूली रोटी,
अरहर की सूखी,
लकडियो की,
धधकती आग जलती रहे और,
आग कम पड़ने लगे,
तो फूँकनी से फूँकना,
अम्मा की आँखो का धुआँ से पिराना,
मुछे याद है,
चूल्हे की आग धधकती रहे,
याद है, मुछे सब याद है ।
आग कोई सीने मे धधकती रहे,
मुझे याद है ।
माँ तो चली गयी,
उसको भी तो कर दिया था,
आग के हवाले,
धधकती की आग के हवाले,
धधकती आग सीने आज भी है,
याद उसकी आती रहे,
मुझे याद है,
आग कोई सीने मे धधकती रहे,
मुछे याद है,
मुछे याद है ।
(हम लोग गाँव, गरमी की छुट्टियों मे ही जा पाते और जितने दिन भी वहाँ रहते, खूब मौज करते थे।
थोड़ा-बहुत उस गुजरे वक्त का जो याद है, उसे ही पिरोया है । आप सभी को अच्छी लगे तो मै धन्य समझूँगा।
ग्रामीण अंचल की बातें है, जिस किसी ने इन्हें जिया है, उनको पसंद आऐगा, ऐसा मेरी मान्यता है।) — with Ram Saran Singh and 8 others.
........आग धधकती रहे........
बटलोई की बनी उढद की दाल,
देशी घी मे लगा हींग का छौक,
चूलहे की बनी फूली-फूली रोटी,
अरहर की सूखी,
लकडियो की,
धधकती आग जलती रहे और,
आग कम पड़ने लगे,
तो फूँकनी से फूँकना,
अम्मा की आँखो का धुआँ से पिराना,
मुछे याद है,
चूल्हे की आग धधकती रहे,
याद है, मुछे सब याद है ।
आग कोई सीने मे धधकती रहे,
मुझे याद है ।
माँ तो चली गयी,
उसको भी तो कर दिया था,
आग के हवाले,
धधकती की आग के हवाले,
धधकती आग सीने आज भी है,
याद उसकी आती रहे,
मुझे याद है,
आग कोई सीने मे धधकती रहे,
मुछे याद है,
मुछे याद है ।
(हम लोग गाँव, गरमी की छुट्टियों मे ही जा पाते और जितने दिन भी वहाँ रहते, खूब मौज करते थे।
थोड़ा-बहुत उस गुजरे वक्त का जो याद है, उसे ही पिरोया है । आप सभी को अच्छी लगे तो मै धन्य समझूँगा।
ग्रामीण अंचल की बातें है, जिस किसी ने इन्हें जिया है, उनको पसंद आऐगा, ऐसा मेरी मान्यता है।) — with Ram Saran Singh and 8 others.
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