कलम से _ _ _ _
07 29 2014
सुप्रभात मित्रों।
झरोखे के पीछे से झांकती, जिदंगी।
बरसात जोर से हो,
इस आस में जिदंगी।
गरम हो रहे थे हम
बरसे वह बस कुछ छण
बरसे तेज थे
नाले परनाले बह निकले थे
करते हैं हम इंतजार
दुबारा फिर आएं
बरसें अबके सावन में जोरदार।
कल रात काफी देर बाद तक ............
घर में हम तीन प्राणी हैं। दो(मेरी पोती एवं धर्मपत्नी) सो गये हैं। मैं हूँ, मुझे नींद नहीं आ रही है, बालकनी में बैठ शांत मन से आकाश को निहार रहा हूँ।
चंचल बदली का एक टुकडा अठखेलियां कर रहा है। इसके बुजुर्ग शाम आकर बरस गये थे। लोगों का गुस्सा कुछ हद तक शांत कर गये थे।
ईद का चादं मैंने नहीं, देखा। मेरी तरह और भी कई होंगे जिन्होंने ने नहीं देखा होगा। किसी ने देखा और जमाने ने मान लिया। ऐलान हो गया कि कल ईद है।
हम खुश हैं, जमाने के साथ हम भी हैं। त्यौहार की खुशियां में शरीक भी होगें।
कोई ईदी का हकदार होगा, हमको सिवंई खाने को मिलेंगी। लोग गले चिपट के मिल ईद की खुशी बांट लेगें।
ईद मन जायेगी। परसों तीज भी हो जायेगी।
हमारा मुल्क यूंही त्योहार मनाता हुआ आगे बढता जाएगा। हर रोज कुछ नये सपने बनेगें, कुछ पूरे होगें, कुछ अधूरे रहेगें। रफ्ता रफ्ता जिदंगी भी आगे बढ़ती रहेगी........
आमीन।
//surendrapal singh//
07 29 2014
http://1945spsingh.blogspot.in/
and
http://spsinghamaur.blogspot.in/
07 29 2014
सुप्रभात मित्रों।
झरोखे के पीछे से झांकती, जिदंगी।
बरसात जोर से हो,
इस आस में जिदंगी।
गरम हो रहे थे हम
बरसे वह बस कुछ छण
बरसे तेज थे
नाले परनाले बह निकले थे
करते हैं हम इंतजार
दुबारा फिर आएं
बरसें अबके सावन में जोरदार।
कल रात काफी देर बाद तक ............
घर में हम तीन प्राणी हैं। दो(मेरी पोती एवं धर्मपत्नी) सो गये हैं। मैं हूँ, मुझे नींद नहीं आ रही है, बालकनी में बैठ शांत मन से आकाश को निहार रहा हूँ।
चंचल बदली का एक टुकडा अठखेलियां कर रहा है। इसके बुजुर्ग शाम आकर बरस गये थे। लोगों का गुस्सा कुछ हद तक शांत कर गये थे।
ईद का चादं मैंने नहीं, देखा। मेरी तरह और भी कई होंगे जिन्होंने ने नहीं देखा होगा। किसी ने देखा और जमाने ने मान लिया। ऐलान हो गया कि कल ईद है।
हम खुश हैं, जमाने के साथ हम भी हैं। त्यौहार की खुशियां में शरीक भी होगें।
कोई ईदी का हकदार होगा, हमको सिवंई खाने को मिलेंगी। लोग गले चिपट के मिल ईद की खुशी बांट लेगें।
ईद मन जायेगी। परसों तीज भी हो जायेगी।
हमारा मुल्क यूंही त्योहार मनाता हुआ आगे बढता जाएगा। हर रोज कुछ नये सपने बनेगें, कुछ पूरे होगें, कुछ अधूरे रहेगें। रफ्ता रफ्ता जिदंगी भी आगे बढ़ती रहेगी........
आमीन।
//surendrapal singh//
07 29 2014
http://1945spsingh.blogspot.in/
and
http://spsinghamaur.blogspot.in/
No comments:
Post a Comment