आने से तुम्हारे,
नई रंगत चेहरे पर आई हुई है,
पेड पोधों पर बहार छाई हुई है,
फिजाओं में सोधीं सी खुशबू फैली हूई है।
हर रोज,
ऐसे ही आया करो,
मन मेरा बहला जाया करो,
सावन में आना,
काली घटा बन झमक के बरसना।
बगिया में फूलों पर आई है बहार अभी,
फूल कुछ नए खिले हैं मुरझा न जाएं कभी,
अपवाद न हो अपराध हो न जाए अभी,
मुबारक कहने को दिन फिर आए कभी।
सावन के महीने में इतना ध्यान अवश्य रखना,
आशा की डोर सधी रहे इतनी बरसात जरूर करना,
कावंडिओं मिले गंगा जल ख्याल इतना रखना,
श्रद्धाभाव न टूटे कभी इसका भी ख्याल रखना।
//surendrapalpalsingh//
http://1945spsingh.blogspot.in/2014/07/blog-post.html — with आशीष कैलाश तिवारी and 47 others.
नई रंगत चेहरे पर आई हुई है,
पेड पोधों पर बहार छाई हुई है,
फिजाओं में सोधीं सी खुशबू फैली हूई है।
हर रोज,
ऐसे ही आया करो,
मन मेरा बहला जाया करो,
सावन में आना,
काली घटा बन झमक के बरसना।
बगिया में फूलों पर आई है बहार अभी,
फूल कुछ नए खिले हैं मुरझा न जाएं कभी,
अपवाद न हो अपराध हो न जाए अभी,
मुबारक कहने को दिन फिर आए कभी।
सावन के महीने में इतना ध्यान अवश्य रखना,
आशा की डोर सधी रहे इतनी बरसात जरूर करना,
कावंडिओं मिले गंगा जल ख्याल इतना रखना,
श्रद्धाभाव न टूटे कभी इसका भी ख्याल रखना।
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