कलम से _ _ _ _
13th July, 2014
माचिस की डिबिया से बाहर आने को मन करता है,
बंद कमरों में रहने में अब दम घुटता है,
खुले आसमान के नीचे आगंन में सोने को मन करता है,
नहीं सुहाती पंखे के नीचे हवा बदन ऐंठा करता है।
खटिया बिछी हो मेरी छत पर,
खुले गगन के नीचे सोने को मन करता है,
आधी आए या आए तूफान,
एक बार आखं लग जाऐ,
फिर चाहे कुछ भी हो जाए,
सुबह अंधेरे ही आखं खुलती हैं,
सुबह सुबह की पुरबइया मन को हर लेती है।
नीम की डाली तोड,
दतून करने का अपना ही सुख है,
टूथपेस्ट से मंजन करने में,
वो आनंद कंहा है।
पेट भले ही भरता हो आधा,
मन शान्त बहुत रहता है,
रहते सब हंस मिल कर,
दिल में रहे न कोई बाधा।
राम राम करते सब इक दूजे को,
राधे राधे कहते रामू काका सबको,
कुल्लू मियां कहते आदावअर्ज है,
राम सिंह बोले सतश्रीआकाल,
श्रद्धाभाव का यहां नहीं कोई अकाल।
http://1945spsingh.blogspot.in/2014/07/blog-post.html — with आशीष कैलाश तिवारी and 46 others.
13th July, 2014
माचिस की डिबिया से बाहर आने को मन करता है,
बंद कमरों में रहने में अब दम घुटता है,
खुले आसमान के नीचे आगंन में सोने को मन करता है,
नहीं सुहाती पंखे के नीचे हवा बदन ऐंठा करता है।
खटिया बिछी हो मेरी छत पर,
खुले गगन के नीचे सोने को मन करता है,
आधी आए या आए तूफान,
एक बार आखं लग जाऐ,
फिर चाहे कुछ भी हो जाए,
सुबह अंधेरे ही आखं खुलती हैं,
सुबह सुबह की पुरबइया मन को हर लेती है।
नीम की डाली तोड,
दतून करने का अपना ही सुख है,
टूथपेस्ट से मंजन करने में,
वो आनंद कंहा है।
पेट भले ही भरता हो आधा,
मन शान्त बहुत रहता है,
रहते सब हंस मिल कर,
दिल में रहे न कोई बाधा।
राम राम करते सब इक दूजे को,
राधे राधे कहते रामू काका सबको,
कुल्लू मियां कहते आदावअर्ज है,
राम सिंह बोले सतश्रीआकाल,
श्रद्धाभाव का यहां नहीं कोई अकाल।
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