कलम से _ _ _ _
आफिस
की छुट्टी हुई
मैने अपनी छतरी ली
और
मस्ती में निकल लिया।
रास्ते में
मंडी से रोहू ली
एक हाथ छतरी
दूसरे में रोहू
सीना चौडा कर
लोगों की निगाह में
खटकता हुआ
आगे बढता हुआ
घर की ओर
चलता रहा।
सुनहरी शाम के
सपने का खाका
दिमाग में
गहराता जा रहा था।
घर के दरवाजे पर
छतरी की आहट से ही
मोहनी ने झट से
दरवाजा खोल
स्वागत किया
देखा हाथ रोहू
मन उसका बल्लियों
उछाल मारने लगा
बंगाली परिवार में
रोहू का आना
बडी बात होती है।
कलकत्ते की
गरमी से निजात
पाने की जरूरत महसूस होती है।
खाना पीना हो गया
मै छत पर ऊपर आ गया
हौले से पीछे
मोहनी भी आ गई
चाँदनी रात में
बदली सी छा गई
कभी इस ओट
कभी उस ओट
चादं तक ने लगा
मैने धीरे से
चमेली का हार
मोहनी के काली काली
गेसुओं में टांक दिया।
खुशी की लहर
एक चेहरे पर दौड गई
स्वप्निल रात भरी आँखों में तैर गई
न जाने कितनी बीती रातें
याद आ गईं
अचानक आँख खुशी से छलक गई।
दिल के अमीर लोगों के
छोटे छोटे सपने बनते बिगडते हैं
कुछ पूरे होते हैं
कुछ अधूरे ही रह जाते हैं
इसीलिए, सपने सपने ही होते हैं।
//surendrapal singh//
07 28 2014
http://1945spsingh.blogspot.in/
and
http://spsinghamaur.blogspot.in/ — with Puneet Chowdhary and Udit Dhar.
आफिस
की छुट्टी हुई
मैने अपनी छतरी ली
और
मस्ती में निकल लिया।
रास्ते में
मंडी से रोहू ली
एक हाथ छतरी
दूसरे में रोहू
सीना चौडा कर
लोगों की निगाह में
खटकता हुआ
आगे बढता हुआ
घर की ओर
चलता रहा।
सुनहरी शाम के
सपने का खाका
दिमाग में
गहराता जा रहा था।
घर के दरवाजे पर
छतरी की आहट से ही
मोहनी ने झट से
दरवाजा खोल
स्वागत किया
देखा हाथ रोहू
मन उसका बल्लियों
उछाल मारने लगा
बंगाली परिवार में
रोहू का आना
बडी बात होती है।
कलकत्ते की
गरमी से निजात
पाने की जरूरत महसूस होती है।
खाना पीना हो गया
मै छत पर ऊपर आ गया
हौले से पीछे
मोहनी भी आ गई
चाँदनी रात में
बदली सी छा गई
कभी इस ओट
कभी उस ओट
चादं तक ने लगा
मैने धीरे से
चमेली का हार
मोहनी के काली काली
गेसुओं में टांक दिया।
खुशी की लहर
एक चेहरे पर दौड गई
स्वप्निल रात भरी आँखों में तैर गई
न जाने कितनी बीती रातें
याद आ गईं
अचानक आँख खुशी से छलक गई।
दिल के अमीर लोगों के
छोटे छोटे सपने बनते बिगडते हैं
कुछ पूरे होते हैं
कुछ अधूरे ही रह जाते हैं
इसीलिए, सपने सपने ही होते हैं।
//surendrapal singh//
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