Saturday, July 12, 2014

सुबह की चाय!

कलम से_______

21st June, 2014.

( आज बस अभी लिखी )

सुबह की चाय,
मैं स्वयं ही बनाता हूं।

अपनी पोती के लिए,
दूध में बार्नवीटा मिलाता हूँ,
जब डिब्बे का ढक्कन,
आराम से न खुला,
तो लगा, एक लंबा सफर,
तय कर लिया है, शायद।

वैसे भी जब डॉक्टर के पास,
जाना होता है,
तो वह कहता है,
अब आप कैल्शियम की डोज,
हर रोज लिया करिए,
घुटनों के दर्द के लिए,
एक गोली लुबरीजॉइंट 500 mg की भी,
सुबह-शाम लिया करिए।

दिल तो बेचारा है,
इसका क्या कहें,
पहले से ही बीमार है,
गुनहगार जो कइयों का है,
उसे ठीक रखने का,
अब रखना पडता, विशेष ख्याल है।

जिदंगी से आगे आगे,
दौडता दिमाग है,
जीने की तमन्ना,
कुछ और कर लेने को,
बहुत बेकरार है।

जीने का असली मजा,
तो आसपास है,
मेरी हसीन घरवाली का,
मिला जो साथ है।

थोडी बहुत जो है बची,
गुजर जाए रब के सहारे,
बस अब इतनी,
सी आस है।

बस अब इतनी सी बात है।
 — with आशीष कैलाश तिवारी and 39 others.
Photo: कलम से_______

21st June, 2014.

( आज बस अभी लिखी )

सुबह की चाय,
मैं स्वयं ही बनाता हूं।

अपनी पोती के लिए,
दूध में बार्नवीटा मिलाता हूँ,
जब डिब्बे का ढक्कन,
आराम से न खुला,
तो लगा, एक लंबा सफर,
तय कर लिया है, शायद।

वैसे भी जब डॉक्टर के पास,
जाना होता है,
तो वह कहता है,
अब आप कैल्शियम की डोज,
हर रोज लिया करिए,
घुटनों के दर्द के लिए,
एक गोली लुबरीजॉइंट 500 mg की भी,
सुबह-शाम लिया करिए।

दिल तो बेचारा है,
इसका क्या कहें,
पहले से ही बीमार है,
गुनहगार जो कइयों का है,
उसे ठीक रखने का,
अब रखना पडता, विशेष ख्याल है।

जिदंगी से आगे आगे,
दौडता दिमाग है,
जीने की तमन्ना,
कुछ और कर लेने को,
बहुत बेकरार है।

जीने का असली मजा,
तो आसपास है,
मेरी हसीन घरवाली का,
मिला जो साथ है।

थोडी बहुत जो है बची,
गुजर जाए रब के सहारे,
बस अब इतनी,
सी आस है।

बस अब इतनी सी बात है।

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