कलम से _ _ _ _
मौजी मन इधर उधर बहका रहता है
मौसम के हिसाब से चला करता है।
गरमी पडती जब कभी इधर कभी उधर,
ठंडी जगह की तलाश में भटका करता है।
बारिश का इंतजार बेकरारी से करता है,
बाढ आते ही किनारा पकडने की कोशिश करता है।
कार्तिक के शीघ्र जा आने की पूजा करता है,
दशहरा दिवाली मना के खुश बहुत होता है।
कुहासी शाम में महबूब के साथ रहने को मन करता है,
रजाई में भीतर घुस लंबी रातों को सोने को मन करता है।
बसंत आते ही होली मनाने को मन बाहर भागा फिरता है,
फूल खिले हैं गुलशन गुलशन जीवन महकाने को मन करता है।
भाग्यशाली हैं हम कितने कैसे कैसे सुख भोग रहे हैं
परम पिता परमेश्वर के अधीन फिर भी मानते क्यों नहीं हैं?
//surendrapal singh//
07182014
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