कलम से _ _ _ _
राधे तू रूठी क्यों है?
राधा बोली,
मेरी करधनी कहीं खोय गई है
ढूंडी बहुत मिल नाय रही है
रास खेले तू करधनी खोऊं मैं
बात ये कछु ठीक नहीं है।
चितां मति कर नई लियाय देगों
अंखियन के आँसू न देख सकूँ हों।
चल सब सखी सखा तोय देख रहे हैं
रास खेलवे कों सब आतुर है रहे हैं।
(कृष्ण राधा और सखी - सखियों के संग यमुना किनारे कदम्ब के पेड के नीचे, उसी स्थान पर ले गये जंहा पूर्व में रास खेला था।)
खेलत खेलत रास कान्हा यूं बोले
सुन मेरी माई,
यह लै राधे अपनी करधनिया
उतार कल तू भूल गई।
लीला थी यह भी मेरी बोले कृष्ण मुरारी,
राधिके तो पै प्यार लुटावै है गिरधारी।
//surendrapal singh//
07 29 2014
http://1945spsingh.blogspot.in/
and
http://spsinghamaur.blogspot.in/
राधे तू रूठी क्यों है?
राधा बोली,
मेरी करधनी कहीं खोय गई है
ढूंडी बहुत मिल नाय रही है
रास खेले तू करधनी खोऊं मैं
बात ये कछु ठीक नहीं है।
चितां मति कर नई लियाय देगों
अंखियन के आँसू न देख सकूँ हों।
चल सब सखी सखा तोय देख रहे हैं
रास खेलवे कों सब आतुर है रहे हैं।
(कृष्ण राधा और सखी - सखियों के संग यमुना किनारे कदम्ब के पेड के नीचे, उसी स्थान पर ले गये जंहा पूर्व में रास खेला था।)
खेलत खेलत रास कान्हा यूं बोले
सुन मेरी माई,
यह लै राधे अपनी करधनिया
उतार कल तू भूल गई।
लीला थी यह भी मेरी बोले कृष्ण मुरारी,
राधिके तो पै प्यार लुटावै है गिरधारी।
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