कलम से _ _ _ _
(इस कविता का सूत्रपात हमारे नागर प्रवास के समय का है,बस पोस्ट करने के लिए सावन का इंतजार था।)
Camp: Naggar Castle
Himachal
कागा अटरिया बैठ
बुला रहा है
आमंत्रण दे रहा है
आ जाओ
स्वागत की तैय्यारी है
थाल सजाके टीके की
राह जोत रही प्यारी है।
कागा अटरिया बैठ--------
प्रियतम सुन लो मेरी बात
करो न मुझे तुम हताश
टिकट कटा शीघ्र
आ जाओ मेरे पास
पल पल बढती बेकरारी है।
कागा अटरिया बैठ-------
बदरा आए
सावन आया
तुम न आए
क्या है ये कोई अच्छी बात
कहा हमारा मानो तुम
छोडछाड आजाओ सब आज।
कागा अटरिया बैठ-----
रंग हरे की तुम्हारी पोशाक
दिख रही है दूर से आज
हवा का रुख भी बदला बदला है
लगने लगा मुझे अब है
तुम हो कहीं आसपास।
कागा अटरिया बैठ--------
//surendrapal singh//
07182014
http://1945spsingh.blogspot.in/2014/07/blog-post.html
and
http://spsinghamaur.blogspot.in/ — with आशीष कैलाश तिवारी and 46 others.
(इस कविता का सूत्रपात हमारे नागर प्रवास के समय का है,बस पोस्ट करने के लिए सावन का इंतजार था।)
Camp: Naggar Castle
Himachal
कागा अटरिया बैठ
बुला रहा है
आमंत्रण दे रहा है
आ जाओ
स्वागत की तैय्यारी है
थाल सजाके टीके की
राह जोत रही प्यारी है।
कागा अटरिया बैठ--------
प्रियतम सुन लो मेरी बात
करो न मुझे तुम हताश
टिकट कटा शीघ्र
आ जाओ मेरे पास
पल पल बढती बेकरारी है।
कागा अटरिया बैठ-------
बदरा आए
सावन आया
तुम न आए
क्या है ये कोई अच्छी बात
कहा हमारा मानो तुम
छोडछाड आजाओ सब आज।
कागा अटरिया बैठ-----
रंग हरे की तुम्हारी पोशाक
दिख रही है दूर से आज
हवा का रुख भी बदला बदला है
लगने लगा मुझे अब है
तुम हो कहीं आसपास।
कागा अटरिया बैठ--------
//surendrapal singh//
07182014
http://1945spsingh.blogspot.in/2014/07/blog-post.html
and
http://spsinghamaur.blogspot.in/ — with आशीष कैलाश तिवारी and 46 others.
No comments:
Post a Comment