कलम से....
एक सुबह, कौशाँमबी सैनट्रल पाकॆ मै।
समय: 6.30 सुबह
पाकॆ मै बैठ गया था थोड़ा,
सुस्ताने को,
सुबह सुबह का वक्त,
सामने की बैँच पर बैठे है,
कूछ बूजुगॆवार,
लगता है कि सभी फुसॆत,
के अब है शिकार,
कोई काम नहींहै,
नहीं काम से कोई दरकार,
इस चुनावी मौसम मै,
दे लेते है गाली दो चार,
कौन बनेगा प्रधानमंत्री,
हो रही है चरचा इस पर बारमबार,
झिक झिक करने को मुद्दा,
अच्छा है,
सुबह का वक्त काटने को,
राजनीतिज्ञौ को गाली देना,
गालिब खयाल अच्छा है,
अच्छी खासी रौनक है,
सभी ऊम्रके लोग आते है,
जिन्दगी का हर रंग,
मिल जाएगा यहाँ,
एक मरा हुआ इनसान भी जी जाएगा यहाँ,
दुआ हमारी सबको लग जाए,
खुशहाली चहु ओर छा जाए,
इसके अलावा एक नेक इनसान,
और क्या मागेगा,
खुदा कुछ और देना भी चाहे,
तो आखिर क्या देगा? — with Ramaa Singh. (4 photos)
एक सुबह, कौशाँमबी सैनट्रल पाकॆ मै।
समय: 6.30 सुबह
पाकॆ मै बैठ गया था थोड़ा,
सुस्ताने को,
सुबह सुबह का वक्त,
सामने की बैँच पर बैठे है,
कूछ बूजुगॆवार,
लगता है कि सभी फुसॆत,
के अब है शिकार,
कोई काम नहींहै,
नहीं काम से कोई दरकार,
इस चुनावी मौसम मै,
दे लेते है गाली दो चार,
कौन बनेगा प्रधानमंत्री,
हो रही है चरचा इस पर बारमबार,
झिक झिक करने को मुद्दा,
अच्छा है,
सुबह का वक्त काटने को,
राजनीतिज्ञौ को गाली देना,
गालिब खयाल अच्छा है,
अच्छी खासी रौनक है,
सभी ऊम्रके लोग आते है,
जिन्दगी का हर रंग,
मिल जाएगा यहाँ,
एक मरा हुआ इनसान भी जी जाएगा यहाँ,
दुआ हमारी सबको लग जाए,
खुशहाली चहु ओर छा जाए,
इसके अलावा एक नेक इनसान,
और क्या मागेगा,
खुदा कुछ और देना भी चाहे,
तो आखिर क्या देगा? — with Ramaa Singh. (4 photos)
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