कुछ मेरी, कुछ तेरी !
Saturday, July 12, 2014
गुलशन में फूल ही फूल बिखरे पडे हैं
18-05-2014
गुलशन में फूल ही फूल बिखरे पडे हैं,
बागबां की निगाह में बहार आ गई है।
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Santosh Kumar Sharma
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Hari Shankar Pandey
,
Umesh Chandra Srivastava
and
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Rajani Bhardwaj
aa gai ye to
May 19 at 3:17pm
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S.p. Singh
इतने सुंदर फूल आपकी नजरों से कैसे बच सकते हैं।
May 19 at 3:55pm
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Ram Saran Singh
Beauty lies in the eyes of beholders. याद करिए , जब सीताजी रावण के उपवन में क़ैद थीं उस समय उन्हें उपवन की शोभा में दारुण दुख दिखाई देता था । कहा है "नूतन किसल़य अनल समाना" पेंड़ की नई नई लाल पत्तियाँ उन्हें अग्नि के समान लगती थीं । यह हमारी मनोदशा पर है कि हम गुलशन को कैसे देखते हैं । लेकिन आपका वर्णन रेगिस्तान में नखलिस्तान पैदा कर देता है । यही तो काव्य कला है ।
May 19 at 5:14pm
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S.p. Singh
इतने सुंदर भाव को नमन। चार चाँद लगा देना शायद इसी कला को कहते हैं। धन्यवाद।
May 19 at 5:47pm
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