कलम से----
दिखती है जो आज,
कभी जवान थी,
बसते थे बहुत अरमान,
किसी की निशानी थी।
चमन बरसता था यहाँ,
बडी रौनकदार थी,
आते थे अमीर उमरा कभी यहां,
सजती थी महफिलें हर रोज यहां।
वो भी दिन हसीन थे,
बेहद ही रंगीन थे,
जमींदारी के ठाठ थे,
आते-जाते लाट थे।
ऐसे दिन देखने के बाद जिसके हाल बेहाल है,
कहते है यारो दौलत और खुशियां,
कभी एक जगह ठहर के नहीं रहतीं है,
बस आती जाती रहती हैं।
----- आती जाती रहती है।
(दोस्तों यह हवेली, जिसका निर्माण हमारे पूज्य दादा एवम पूर्वज श्रीमान महताब सिंह जी ने 1932 मे पूर्ण कराया। कालांतर में हम लोगों में से कोई भी वहां नहीं रहा, जिस कारण यह सुदंर इमारत ढह गई। हमलोग, अभी भी अपने गांव में दूसरी हवेली में निवास कर रहे हैं, जो हमारे पूर्वजों ने 1881-82 में निर्मित कराई थी। आजकल उसी के रखरखाव में हमारी चिंतायें बनी रहती हैं। विरासत में मिले इन चिन्हों को हम भविष्य के लिए सुरक्षित रख सकें, यही हमारी बहुत बडी उपलब्धि होगी। वैसे तो शहरों में पलायन के बाद, मूलभूत सुबिधाऔ के अभाव में, कौन गांव जाना चाहता है। हम फिर भी अपना सम्बन्ध बनाये हुए हैं।) — withआशीष कैलाश तिवारी and 10 others.
दिखती है जो आज,
कभी जवान थी,
बसते थे बहुत अरमान,
किसी की निशानी थी।
चमन बरसता था यहाँ,
बडी रौनकदार थी,
आते थे अमीर उमरा कभी यहां,
सजती थी महफिलें हर रोज यहां।
वो भी दिन हसीन थे,
बेहद ही रंगीन थे,
जमींदारी के ठाठ थे,
आते-जाते लाट थे।
ऐसे दिन देखने के बाद जिसके हाल बेहाल है,
कहते है यारो दौलत और खुशियां,
कभी एक जगह ठहर के नहीं रहतीं है,
बस आती जाती रहती हैं।
----- आती जाती रहती है।
(दोस्तों यह हवेली, जिसका निर्माण हमारे पूज्य दादा एवम पूर्वज श्रीमान महताब सिंह जी ने 1932 मे पूर्ण कराया। कालांतर में हम लोगों में से कोई भी वहां नहीं रहा, जिस कारण यह सुदंर इमारत ढह गई। हमलोग, अभी भी अपने गांव में दूसरी हवेली में निवास कर रहे हैं, जो हमारे पूर्वजों ने 1881-82 में निर्मित कराई थी। आजकल उसी के रखरखाव में हमारी चिंतायें बनी रहती हैं। विरासत में मिले इन चिन्हों को हम भविष्य के लिए सुरक्षित रख सकें, यही हमारी बहुत बडी उपलब्धि होगी। वैसे तो शहरों में पलायन के बाद, मूलभूत सुबिधाऔ के अभाव में, कौन गांव जाना चाहता है। हम फिर भी अपना सम्बन्ध बनाये हुए हैं।) — withआशीष कैलाश तिवारी and 10 others.

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