Sunday, July 13, 2014

पौ फटने से ही, शुरू हो जाता है, वो आता जाता दिन !

कलम से ....

अभी आज ही

पौ फटने से ही,
शुरू हो जाता है,
वो आता जाता दिन,
आँगन मे बुहारना,
गौरैया का फुदुर-फुदुर कूदना,
दो गिलहरियो का इधर-उधर भागना,
नीम के बौर को,
अमलताश के झडे फूलों को,
तुलसी की मजंरी को,
झाडू से आँगन के कोने मे करना,
बरोसी मे कंडे लगा के
दूध चढाना,
घर के बाहर अमिया के पेड़ से
टपके उठाना,
तब जाकर ललुआ को ऊठाना,
आखे मलते हुए को नहर पर नहाने भेजना,
तब कहीं जाकर किसी कोने मे बैठना ।

कितना भाता है
मन को उस
तस्वीर मे
रंग भरना,
जिसे जिया हो
करीब से देखा हो ।

नहीं लौट पाऐगे
बीते दिनों
के पास,
दूर रहकर ही
फडफडाऐगे, पछताऐगे
लेकिन पास
नहीं जाऐगे
बीते दिनों
के पास
नहीं लौट पाऐगे ।
 — with आशीष कैलाश तिवारी and 19 others.
Photo: कलम से ....

अभी आज ही

पौ फटने से ही,
शुरू हो जाता है,
वो आता जाता दिन,
आँगन मे बुहारना,
गौरैया का फुदुर-फुदुर कूदना,
दो गिलहरियो का इधर-उधर भागना,
नीम के बौर को,
अमलताश के झडे फूलों को,
तुलसी की मजंरी को,
झाडू से आँगन के कोने मे करना,
बरोसी मे कंडे लगा के
दूध चढाना,
घर के बाहर अमिया के पेड़ से 
टपके उठाना,
तब जाकर ललुआ को ऊठाना,
आखे मलते हुए को नहर पर नहाने भेजना,
तब कहीं जाकर किसी कोने मे बैठना ।

कितना भाता है
मन को उस
तस्वीर मे
रंग भरना,
जिसे जिया हो
करीब से देखा हो ।

नहीं लौट पाऐगे
बीते दिनों
के पास,
दूर रहकर ही
फडफडाऐगे, पछताऐगे
लेकिन पास
नहीं जाऐगे
बीते दिनों 
के पास
नहीं लौट पाऐगे ।

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