Sunday, July 13, 2014

बहुत दूर नही है !

यह पोस्ट मेरे बचपन के दोस्त योगेन्द्र भटनागर के नाम जिनके साथ ऐ शाम ( 21st April, 2014)बितायी थी । यह दोस्त कल ही हासपीटल से वापस आया है । चिरायु हो और सुखी रहे यही कामना है ।

कलम से ....

बहुत दूर 
नही है, 
पास मे ही रहते
मेरे बचपन के
साथ पढ़े साथ खेले एक दोस्त ।

फोन कर बोले,
आजाओ शाम,
बैठकी हो जाए,
उसके बाद ए लमहा,
फिर जल्दी आए न आए
जाना है उनको पूना बेटी के पास।

तयशुदा वक्त, मै परिवार सहित,
जा पहुँचा ऊनके घर।
मुछे मिला मॆदौ वाला पेय,
श्रीमती जी के हाथ आया प्याला एक चाय का।

फिर क्या था छिडा,
हमलोग के बीच का राग,
रुकने को रूकते नहीं थे,
बचपन के संवाद ।

लाललाल जंगल जलेवी खाना,
पेडतले सत गुटटे, कंचौ का वो खेलना,
खेलते खेलते आपस मे भिड जाना,
चोर सिपाही के खेल मे छिपजाना,
स्कूल की लाइब्रेरी मे चंदामामा का पढ़ना,
अकबर-बीरबल के किस्से पै लोटना पोटना,
ड्रॉमौ-इसकिट्स मे बडचढ कर भाग लेना,
मैनपुरी, टूडंला, फिरोजाबाद रेलगाड़ी से फुटबॉल-हाकी के मैच खेलने जाना,
.....लिस्ट है कि थमती नहीं है।

इन सबके बीच जो होना था
वो भी होता था,
दिल का लगाना-बुझाना,
बात शुरू होते ही,
श्रीमतियौ के कान खड़े हो जाना,
हम क्या कह रहे है क्या सुन रहे है,
ऊसे बहुत ध्यान से सुनना सुनाना।

दोस्त बोला पढ़ने पढ़ाने पर,
कहानी किस्से,
कातं साहब के नाबेल,
खत्री भाइयों की चंद्रकाता, भूतनाथ, रोहतासमठ की कहानी जिसे अगर शुरू कर,
बीच मे कोई भी नहीं छोड सकता था,
एसा था उनका पढ़ना पढाना,
राहुल सास्कृंतियान जी के लिखे लेख और कहानियो पर चॆचा हो जाना ।

और भी न जाने क्या-क्या ।

रात अधिक होरही,
कार चला घर वापस भी तो था आना,
बाय-बाय टाटा कर किया हमने चलना चलाना ।

लौटते वक्त दौड़ रहे थे निगाह मे,
वो बचपन के दिन और उनसे
मिलना मिलाना।
 — with Ramaa Singh and 2 others.
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