कलम से----
अभी का मन
क्षितिज के उस पार भी एक दुनिया है,
वहां कुछ दिन रह के देखते है।
कुछ दिन, बाद का मन
सुना है वहां हम से बेहतर इनसान रहते हैं,
क्यों हम जाके वहां उनकी दुनियां खराब करते हैं।
छोडो जैसी है हमें अपनी यह धरती ही मुबारक है,
क्या करेंगे जाकर वहां जहां धरती आकाश मिलते हैं।
( No more posts for a week - taking time off) — with आशीष कैलाश तिवारी and37 others.
अभी का मन
क्षितिज के उस पार भी एक दुनिया है,
वहां कुछ दिन रह के देखते है।
कुछ दिन, बाद का मन
सुना है वहां हम से बेहतर इनसान रहते हैं,
क्यों हम जाके वहां उनकी दुनियां खराब करते हैं।
छोडो जैसी है हमें अपनी यह धरती ही मुबारक है,
क्या करेंगे जाकर वहां जहां धरती आकाश मिलते हैं।
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