कलम से .....
हम सब न जाने कैसे-कैसे जीते हैं,
रोज हंसते हैं रोज जीते-मरते है ।
जीने का भी अंदाज बडा अनोखा है
कुछ भी समझो हमें न कोई धोखा है।
जीने का भी अंदाज अपना-अपना है
मरने की क्या कहै हर रोज मरना है।
दोस्तों, छोडो जीने मरने को
इसमें क्या रख्खा है
चलो कुछ नया करे
बीते पलो की बात करें
अपनी मोहब्बतों की याद करें
कुछ पल, पीछे जाके जी ले
कुछ को, कल को छोडे
बस आज खुशी से जीवन जी ले. .... — with आशीष कैलाश तिवारी and 19 others.
हम सब न जाने कैसे-कैसे जीते हैं,
रोज हंसते हैं रोज जीते-मरते है ।
जीने का भी अंदाज बडा अनोखा है
कुछ भी समझो हमें न कोई धोखा है।
जीने का भी अंदाज अपना-अपना है
मरने की क्या कहै हर रोज मरना है।
दोस्तों, छोडो जीने मरने को
इसमें क्या रख्खा है
चलो कुछ नया करे
बीते पलो की बात करें
अपनी मोहब्बतों की याद करें
कुछ पल, पीछे जाके जी ले
कुछ को, कल को छोडे
बस आज खुशी से जीवन जी ले. .... — with आशीष कैलाश तिवारी and 19 others.
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