Saturday, July 12, 2014

तुमसे कभी अचानक मुलाकात हो जाए,


कलम से----

यह कविता कुछ दिनों पहले लिखी गई थी। आज आपकी सेवा में पेश है।

18-05-2014

तुमसे कभी अचानक मुलाकात हो जाए,
तुम पहचानने की क्या कोशिश करोगे,
तुम्हारे जेहन में शायद मेरी याद भी न आए,
तुमसे कभी----

गांव के बरगद के पेड की तरह हो गया हूँ मैं,
खडा हूँ दूसरों की जिंदगी के लिए,
अक्सर कुछ लोग मेरी शीतल छाया का आनंद उठाते हैं,
कभी कुछ परिन्दे मुझ पर थकान मिटाते हैं,
किसी का आदर्श हूँ मै,
कभी कुछ लोग त्योहार में जल चढा जाते हैं।

मेरा सीना गर्व से फूला नहीं समाता,
जब हरेक इनसान मेरे पास है आता।

इतना सब होते हुए भी एक गम सताता है,
तुमसे कभी अचानक मुलाकात हो जाए
तुम पहचानने की क्या कोशिश करोगे,
तुम्हारे जेहन में शायद मेरी याद भी न आए,
तुमसे कभी----
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 — with Ram Saran Singh and 44 others.
Photo: कलम से----

यह कविता कुछ दिनों पहले लिखी गई थी। आज आपकी सेवा में पेश है।

18-05-2014

तुमसे कभी अचानक मुलाकात हो जाए, 
तुम पहचानने की क्या कोशिश करोगे, 
तुम्हारे जेहन में शायद मेरी याद भी न आए,
तुमसे कभी----

गांव के बरगद के पेड की तरह हो गया हूँ मैं, 
खडा हूँ दूसरों की जिंदगी के लिए, 
अक्सर कुछ लोग मेरी शीतल छाया का आनंद उठाते हैं, 
कभी कुछ परिन्दे मुझ पर थकान मिटाते हैं, 
किसी का आदर्श हूँ मै,
कभी कुछ लोग त्योहार में जल चढा जाते हैं।

मेरा सीना गर्व से फूला नहीं समाता,
जब हरेक इनसान मेरे पास है आता।

इतना सब होते हुए भी एक गम सताता है,
तुमसे कभी अचानक मुलाकात हो जाए
तुम पहचानने की क्या कोशिश करोगे, 
तुम्हारे जेहन में शायद मेरी याद भी न आए, 
तुमसे कभी----
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