Saturday, July 12, 2014

बिहंगम दृश्य, दिव्यदृश्टि को दिखाई देते है!

कलम से....

बिहंगम दृश्य,
दिव्यदृश्टि को दिखाई देते है,
ऐसा कुछ गुणी लोग कहते है,
मै ठहरा साधारण सा व्यक्ति,
पर जो देखा,
पहले कभी न देखा था।

था आकाश लालिमा मे डूबा-ढूबा,
सूर्यास्त के पूवॆ लौटने को वेचैन
सभी,
मानव-दानव और पक्षी,
मै भी था, जीवन पथ पर,
गुलमोहर के वृक्षों पर चढ़ा हुआ था,
गहरे लाल रंग का असर,
संध्या जा रही थी परिधि की ओट,
गोधूलि बेला थी,
आखौ मे चढ रहा था,
यह दृश्य,
जो दिव्य दृष्टि को ही दिखता,
दिख रहा था हमको भी,
वही, बिहगंम,दिव्य दृश्य .....

दूर कहीं उठ रहा था,
घने धुये का गुब्बार,
थी नीचे की लकडियौ मे धू धू कर जलती आग,
खड़े थे, कुछ लोग चारों ओर,
उस धधकती अग्नि के,
दिख रहा था, हमको....
दिव्य दृश्य ।

पंचतत्व मे सब,
विलीन हो रहा,
इस जीवन का सत्य,
दिख रहा था, हमको....
दिव्य दृश्य।
 — with Ram Saran Singh and 17 others.
Photo: कलम से....

बिहंगम दृश्य, 
दिव्यदृश्टि को दिखाई देते है,
ऐसा कुछ गुणी लोग कहते है,
मै ठहरा साधारण सा व्यक्ति,
पर जो देखा,
पहले कभी न देखा था।

था आकाश लालिमा मे डूबा-ढूबा,
सूर्यास्त के पूवॆ लौटने को वेचैन
सभी,
मानव-दानव और पक्षी,
मै भी था, जीवन पथ पर,
गुलमोहर के वृक्षों पर चढ़ा हुआ था,
गहरे लाल रंग का असर,
संध्या जा रही थी परिधि की ओट,
गोधूलि बेला थी, 
आखौ मे चढ रहा था,
यह दृश्य,
जो दिव्य दृष्टि को ही दिखता,
दिख रहा था हमको भी,
वही, बिहगंम,दिव्य दृश्य .....

दूर कहीं उठ रहा था,
घने धुये का गुब्बार,
थी नीचे की लकडियौ मे धू धू कर जलती आग,
खड़े थे, कुछ लोग चारों ओर, 
उस धधकती अग्नि के,
दिख रहा था, हमको....
दिव्य दृश्य ।

पंचतत्व मे सब,
विलीन हो रहा,
इस जीवन का सत्य,
दिख रहा था, हमको....
दिव्य दृश्य।

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