कलम से _ _ _ _
23rd June, 2014
सांझ होते ही
सहम जाती हूँ
डर के अपने पंख मे छिप जाती हूँ
मैं एक कबूतरी हूँ
अपने पिया संग रहती हूँ।
इस शहर में
सहर होने तक
चैन नहीं मिलता है
हर वक्त यहां कुछ न कुछ
होता रहता है।
शोरगुल इतना है
कान बहरे हो जाते हैं
कुछ लोग कार में म्यूजिक
तेज बहुत बजाते हैं
खुद तो मौज करते हैं
दूसरों की नींद हराम करते हैं
चिल्लाने को वजूहात
बहुत होते हैं
बिजली नहीं होने को
लोग हरदम यहां रोते हैं
न तो खुद सोते हैं
और न मुझे सोने देते हैं।
सोने, सोने को लेकर
परेशान बहुत होते हैं
सोना नसीब होता है
तो दिल खोल के हंसते हैं।
वो तो हंस लेते हैं
हमको तो वो रोने भी नहीं देते हैं
ऐसे मनहूस लोगां
यहां रहते हैं। — with Ram Saran Singh and 46 others.
23rd June, 2014
सांझ होते ही
सहम जाती हूँ
डर के अपने पंख मे छिप जाती हूँ
मैं एक कबूतरी हूँ
अपने पिया संग रहती हूँ।
इस शहर में
सहर होने तक
चैन नहीं मिलता है
हर वक्त यहां कुछ न कुछ
होता रहता है।
शोरगुल इतना है
कान बहरे हो जाते हैं
कुछ लोग कार में म्यूजिक
तेज बहुत बजाते हैं
खुद तो मौज करते हैं
दूसरों की नींद हराम करते हैं
चिल्लाने को वजूहात
बहुत होते हैं
बिजली नहीं होने को
लोग हरदम यहां रोते हैं
न तो खुद सोते हैं
और न मुझे सोने देते हैं।
सोने, सोने को लेकर
परेशान बहुत होते हैं
सोना नसीब होता है
तो दिल खोल के हंसते हैं।
वो तो हंस लेते हैं
हमको तो वो रोने भी नहीं देते हैं
ऐसे मनहूस लोगां
यहां रहते हैं। — with Ram Saran Singh and 46 others.

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