Saturday, July 12, 2014

उस छण को मै, जीवन में कैसे भूलूंगा

कलम से----

29-05-2014 भोर में ही।।

उस छण को मै,
जीवन में कैसे भूलूंगा,
जब तुमने,
मेरे मन आँगन में पहला कदम रखा था।

एक वो दिन था,
एक आज का दिन है,
मुझे हर बात स्मरण है,
जो तुम को छू जाती थी,
कभी आँखों में नमी,
तो कभी खुशी छा जाती थी।

घूँघट के भीतर से वो ताक झांक,
अब तक मन सहला जाती है,
वो नयनों की नयनों से बात,
अब तक दिल बहला जाती है।

तुम्हारे चेहरे की हर उस भाव को हमने खूब पढा है,
तुम्हारी साडी की हर सिलवट हमने ही ठीक किया है,
हथेलियों को अपनी हथेलियों बीच लेकर,
उम्र के इस मुकाम तक की कहानी को, हम दोनों ने मिलकर ही तो गढा है,
हर पल जिया है,
उसे महसूस किया है।

यह स्मृतियाँ अब हमारी धरोहर हैं,
आगे के सारे जीवन की संगिनी हैं,
इन्हीं यादों के साथ अब जीना मरना है,
उस छण को मै,
जीवन में कैसे भूलूंगा,
जब तुमने,
मेरे मन आँगन में पहला कदम रखा था।
 — with Ram Saran Singh and 30 others atKaushambi (Ghaziabad).
Photo: कलम से----

29-05-2014 भोर में ही।।

उस छण को मै,
जीवन में कैसे भूलूंगा,
जब तुमने,
मेरे मन आँगन में पहला कदम रखा था।

एक वो दिन था,
एक आज का दिन है,
मुझे हर बात स्मरण है,
जो तुम को छू जाती थी,
कभी आँखों में नमी,
तो कभी खुशी छा जाती थी।

घूँघट के भीतर से वो ताक झांक,
अब तक मन सहला जाती है,
वो नयनों की नयनों से बात,
अब तक दिल बहला जाती है।

तुम्हारे चेहरे की हर उस भाव को हमने खूब पढा है,
तुम्हारी साडी की हर सिलवट हमने ही ठीक किया है,
हथेलियों को अपनी हथेलियों बीच लेकर,
उम्र के इस मुकाम तक की कहानी को, हम दोनों ने मिलकर ही तो गढा है,
हर पल जिया है,
उसे महसूस किया है।

यह स्मृतियाँ अब हमारी धरोहर हैं,
आगे के सारे जीवन की संगिनी हैं,
इन्हीं यादों के साथ अब जीना मरना है,
उस छण को मै,
जीवन में कैसे भूलूंगा, 
जब तुमने, 
मेरे मन आँगन में पहला कदम रखा था।

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