Friday, August 8, 2014

मैं ठहरा गँवार

कलम से ____

मैं ठहरा गँवार इसी जगह खडा रहा
तुम थे तेज तर्रार बाहर जा बडे हुए।

मैं भारत माता के चरणों की रज लेता रहा
तुम अमरीका में ज्ञान ध्यान में लगे रहे।

मेरी भाग्य रेखा में था बैलों का इक जोडा
तुम संपत्ति और मायाजाल में फंसे रहे।

मैं बैठा इक मंदिर मैं नतमस्तक भगवान समक्ष
तुम वहाँ संसार बसा गुणगान दूसरों का करते रहे।

खेतों में फसल जब लहलहाती है आखँ मेरी खुशी से छलक जाती है
धरती माँ की याद जब जब सताती है आखँ तुम्हारी भी भर आती है।

//surendrapal singh//
08 08 2014

http://spsinghamaur.blogspot.in/
Photo: कलम से ____

मैं ठहरा गँवार इसी जगह खडा रहा
तुम थे तेज तर्रार बाहर जा बडे हुए।

मैं भारत माता के चरणों की रज लेता रहा
तुम अमरीका में ज्ञान ध्यान में लगे रहे।

मेरी भाग्य रेखा में था बैलों का इक जोडा
तुम संपत्ति और मायाजाल में फंसे रहे।

मैं बैठा इक मंदिर मैं नतमस्तक भगवान समक्ष
तुम वहाँ संसार बसा गुणगान दूसरों का करते रहे।

खेतों में फसल जब लहलहाती है आखँ मेरी खुशी से छलक जाती है
धरती माँ की याद जब जब सताती है आखँ तुम्हारी भी भर आती है।

//surendrapal singh//
08 08 2014

http://spsinghamaur.blogspot.in/

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