Saturday, August 30, 2014

कलम से____

दिल की धडकनों को दिल ही समझता है,
हम बेखबर थे तुम भी नादान थे,
हम लोगों के दरम्यान कुछ हुआ ही नहीं था
शोर ज़माने में न जाने क्यों मचा हुआ था।

एक अफसाना जो न शुरू हुआ
और हुआ न खत्म,
दुनियां समझती रही
मुझे तेरा हमदम।

वह दिन अजीब थे
दूर से देख कर हम खुश हो लिया करते थे
उनके नजर के इशारे भी न हम समझते थे
ऐसे ऐसे बुद्धू उस वक्त हुआ करते थे।

जब याद करते हैं
हँसी आती है औ' कभी आँख दुख जाती है
बचपन की कहानी याद बहुत आती है।

//surendrapal singh//

http://spsinghamaur.blogspot.in/
 — with Puneet Chowdhary.
Photo: कलम से____

दिल की धडकनों को दिल ही समझता है,
हम बेखबर थे तुम भी नादान थे,
हम लोगों के दरम्यान कुछ हुआ ही नहीं था
शोर ज़माने में न जाने क्यों मचा हुआ था।

एक अफसाना जो न शुरू हुआ 
और हुआ न खत्म,
दुनियां समझती रही 
मुझे तेरा हमदम।

वह दिन अजीब थे
दूर से देख कर हम खुश हो लिया करते थे
उनके नजर के इशारे भी न हम समझते थे
ऐसे ऐसे बुद्धू उस वक्त हुआ करते थे।

जब याद करते हैं
हँसी आती है औ' कभी आँख दुख जाती है
बचपन की कहानी याद बहुत आती है।

//surendrapal singh//

http://spsinghamaur.blogspot.in/
  • Ram Saran Singh ज़माने को क्या कहा जाए । ज़माना सुन रहा था बड़े शौक़ से हमीं
    सो गए दास्ताँ कहते कहते । बढ़िया लगी रचना । धन्यवाद ।
  • S.p. Singh पहली टिप्पणी कल शाम के बाद आपकी। मैं तो सोचने लगा था कि सो गए हैं सब लोग नींद से उठाना अब ठीक नहीं।
    बहुत बहुत धन्यवाद।
  • Ram Saran Singh महोदय । FB जी धोखा दे गए । आज बच्चों ने ठीक किया । अन्यथा मैं आपकी रचनाओं को मिस नहीं करता ।
  • S.p. Singh मुझे खुशी है कि FB से दुबारा जुड पा रहे हैं
    मैंने तो बस ऐसे ही हल्का फुल्का मज़ाक सा किया था।
    शुक्रिया।

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