Friday, October 31, 2014

एक नजारा अजीबोगरीब देखा
रात भर दिल्ली में खाली बसों को भागते देखा
दिन में ठसाठस भरी देखा
दिल्ली के लोग भी .......
 — with Puneet Chowdhary.
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बाज़ार का दस्तूर ही है, कुछ ऐसा

कलम से_____
बाज़ार का दस्तूर ही है, कुछ ऐसा
सस्ता सामान आसानी से है बिक जाता,
महगें का खरीद दार नहीं मिलता !!!
//सुरेन्द्रपालसिंह © 2014//
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  • Shravan Kumar Sachan Neelam heerey ke sath
    19 hrs · Unlike · 1
  • Kalpana Chaturvedi परंतु यह सदा नहीं यदा कदा होता है।
    पहचानने पर सत्य की प्राप्ति होती है।
    18 hrs · Unlike · 1
  • Umesh Sharma हीरे को जो पहचान लें, वो नज़रें बड़ी मुश्किल से मिलती हैंSee Translation
    18 hrs · Unlike · 1
  • Harihar Singh रहरहसयवाद से भरे विचार ।बहुत सुन्दरSee Translation
    18 hrs · Unlike · 1
  • Ajay Kumar Misra गम्भीर भावपूर्ण रचना, 
    दुनियाँ में ईमानदार बड़े 
    मुश्किल से मिलता है।
    "जय श्री राधे राधे"
    See Translation
    17 hrs · Edited · Unlike · 1
  • Deepika Namdev बढिया,,,
    दूसरा पहलू कुछ यॅू भी है कि,,,
    अगर बिकने पे आ जाओ तो घट जाते है दाम अक्सर।
    ...See More
    16 hrs · Unlike · 1
  • S.p. Singh बहुत खूब।
    16 hrs · Like · 1
  • Ram Saran Singh आदरणीय । बाज़ार के दस्तूर में दम है । सस्ता माल जल्दी बिक जाता है । अब मैं इस आधार वाक्य को थोड़ा Twist करना चाहूँगा । चुनाव में गुंडे, लफ़ंगे, बेईमान और घटिया क़िस्म के लोग जीत जाते हैं जबकि कर्मठ, ईमानदार, भले आदमी की ज़मानत ज़ब्त हो जाती है । ब्रिटेन की महारानी ने जब सोने के सिक्के चलवाए तो देखते देखते वे सब बाज़ार से ग़ायब हो गए और घटिया सिक्के चल पड़े । महोदय आपने क़तई सही कहा है । धन्यवाद ।
    15 hrs · Unlike · 1
  • S.p. Singh सिंह साहब आपने सही फरमाया है।
    7 hrs · Like · 1