Saturday, August 30, 2014

सागर जब-जब रोता है मन क्यों व्याकुल होता है

सागर जब-जब रोता है
मन क्यों व्याकुल होता है
आँखों में उतरी नरमाई
कजरा साथ ले भरमाई
पीर कलेजे छितराई
सजन काश होते हमराही

सागर जब................

वो दिन भी थे कैसे अनोखे
रह न पाते हम तुम को बिन देखे
आते तुम चन्द्रमहल में सदके
थमे-थमे कदमों से आगे बढ़के

सागर जब.................

बीन के राग में मीत नहीं भरमाया
फूल खिले-खिले कैसे मुरझाया
समझ नहीं आता मन कैसे अकुलाया
भव सागर पार करें कैसे तुम बिन हम,
सागर जब..................

http://rammasingh.blogspot.in/
 — with S.p. Singh.
Photo: सागर जब-जब रोता है
मन क्यों व्याकुल होता है
आँखों में उतरी नरमाई
कजरा साथ ले भरमाई
पीर कलेजे छितराई
सजन काश होते हमराही

सागर जब................

वो दिन भी थे कैसे अनोखे
रह न पाते हम तुम को बिन देखे
आते तुम चन्द्रमहल में सदके
थमे-थमे कदमों से आगे बढ़के

सागर जब.................

बीन के राग में मीत नहीं भरमाया
फूल खिले-खिले कैसे मुरझाया
समझ नहीं आता मन कैसे अकुलाया
भव सागर पार करें कैसे तुम बिन हम, 
सागर जब..................

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