Monday, April 13, 2015

माली की कैंची चलने ही वाली है



कलम से____

माली की कैंची चलने ही वाली है
बस दो एक दिन की और छूट है !!

©सुरेंद्रपालसिंह 2015
— with Puneet Chowdhary.
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पतझर के मौसम में कोशिश की थी हंसने की एक बार



कलम से____

13th April /Kaushambi/Ghaziabad

पतझर के मौसम में कोशिश की थी हंसने की एक बार
मिलता नहीं है मधुमास का रंग हर किसी को बार बार।

बाबज़ूद इसके ज़िदंगी मेरी रहती है क्यों उदास
तेरे ख्यालों की रौशनी सदा है मेरे साथ।

ये कोई और बात थी कि तू न सुन पाया
आवाज़ देती रही हमेशा तूझे मेरी हर सांस।

बेईमानों के ही हक़ में होते रहे हैं फ़ैसले
चलते रहे हैं वो चाल ही हमेशा एक खास।

पूछा नहीं क्यों उलझ के रह गया हूँ रिश्तों के जाल में
दम तोड़ती रही है हर बार मेरी वो इक आस।

©सुरेंद्रपालसिंह 2015
http://spsinghamaur.blogspot.in/
— with Puneet Chowdhary.
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