Thursday, July 31, 2014

कचनार।

कलम से _ ___

कचनार।

तोडी नहीं जाती है कच्ची कली कचनार की
फूलों के बाजार में यह कहावत सुनी होगी।

गुलाबी और सुफेद रंगो से रहती है सजी
हरे भरे पेड पर लगे कली कचनार की ।

माली बाग का वोले यही दिल में है समाती
अदब में कही किसी की सुदंर तारीफ लगती।

भगवान के सामने कहता है बात पुजारी
यही बात कानों को कितनी है सुहाती।

कोठे लखनऊ ऊपर खालाजान जब ये बोले
दिल को चुभती है खराब गाली सी है लगती।

अक्सर कहते हैं कहावतें यूँ ही नहीं बनतीं
हर एक के पीछे आसूँ भरी दासतां है रहती।

//surendrapal singh//

08 01 2014

http://1945spsingh.blogspot.in/

and

http://spsinghamaur.blogspot.in/
 — with Puneet Chowdhary.
Photo: कलम से _ ___

कचनार।

तोडी नहीं जाती है कच्ची कली कचनार की
फूलों के बाजार में यह कहावत सुनी होगी।

गुलाबी और सुफेद रंगो से रहती है सजी 
हरे भरे पेड पर लगे कली कचनार की ।

माली बाग का वोले यही दिल में है समाती 
अदब में कही किसी की सुदंर तारीफ लगती।

भगवान के सामने कहता है बात पुजारी
यही बात कानों को कितनी है सुहाती।

कोठे लखनऊ ऊपर खालाजान जब ये बोले
दिल को चुभती है खराब गाली सी है लगती।

अक्सर कहते हैं कहावतें यूँ ही नहीं बनतीं
हर एक के पीछे आसूँ भरी दासतां है रहती।

//surendrapal singh//

08 01 2014

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कान्हा यशोदा मैया से..........

कलम से____

कान्हा यशोदा मैया से..........

मैया मेरी रोटी मोय खिलायदे
गइय्यन कों लै जानो है
माखन थोडो सो लगायदे
रोटी के ऊपर
और मठा संग दै दे।

मैया वोली रुक जा लाला
थोडी देर लगैगी
रोटी बनाय लेन दे
लकडिय़ां गीली हैं
परेशान कर रयी हैं।

थोडी देर बाद जब रोटियाँ बन जातीं हैं। मैया मठा लोटे में डाल और रोटी पर मक्खन लगाने जाती हैं तो पता लगता है कि माखन तो है ही नहीं। हांडी तो खाली पडी है। मैया जान लेती है कि लाला सारा माखन पहले ही ऊडा चुके हैं। वह हौले से लाला के पास जा कान पकड बोलती हैं।

अब जानू हूँ कि माखन किनने खायो है
वो मैं सोचूँ हूँ
कि लाला क्यों जल्दी मचाय रयो है।

फिर मैया मुहं आचंल छिपा जोर से हंसने लगती है और कान्हा की पीठ पर प्यार भरी थपकी देती है।

भक्तों के लिए कृष्ण की यह एक अभूतपूर्व एवं अलौकिक लीला है।

//surendrapal singh//

08 01 2014

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 — with Puneet Chowdhary.
Photo: कलम से____

कान्हा यशोदा मैया से..........

मैया मेरी रोटी मोय खिलायदे
गइय्यन कों लै जानो है
माखन थोडो सो लगायदे
रोटी के ऊपर
और मठा संग दै दे।

मैया वोली रुक जा लाला 
थोडी देर लगैगी
रोटी बनाय लेन दे
लकडिय़ां गीली हैं 
परेशान कर रयी हैं।

थोडी देर बाद जब रोटियाँ बन जातीं हैं। मैया मठा लोटे में डाल और रोटी पर मक्खन लगाने जाती हैं तो पता लगता है कि माखन तो है ही नहीं। हांडी तो खाली पडी है। मैया जान लेती है कि लाला सारा माखन पहले ही ऊडा चुके हैं। वह हौले से लाला के पास जा कान पकड बोलती हैं।

अब जानू हूँ कि माखन किनने खायो है
वो मैं सोचूँ हूँ 
कि लाला क्यों जल्दी मचाय रयो है।

फिर मैया मुहं आचंल छिपा जोर से हंसने लगती है और कान्हा की पीठ पर प्यार भरी थपकी देती है।

भक्तों के लिए कृष्ण की यह एक अभूतपूर्व एवं अलौकिक लीला है।

//surendrapal singh//

08 01 2014

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and
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