Wednesday, August 13, 2014

का हो गुलरी के फूल हो गईल हउवा?

कलम से____

ईद के चाँद हुइ गइल हो कंहा रहत हो भाई?

का हो गुलरी के फूल हो गईल हउवा?

हाल यार का पूछने का अन्दाज गजब है
दिल मेरा लुट गया है मिला बडा सुकून है।

मासूमियत टपकती है अदांजे वयां में
मिलेगा प्यार इतना कहाँ इस जहां में।

कुरबान हूँ मैं तुम्हारी इन अदाओं पर
मिलेगा चैन नहीं कहाँ तुम्हें छोड कर।

हमरे बप्पा, हमरे कक्का यहीं दफन हैं
हम न जाइब अपनी धरती छोड कर।

मंजूर है मरना यहाँ, दफ्न हो जाएगें यहीं
जाएगें और कहीं न, हमारा वतन है यही।

//surendrapalsingh//
08 13 2010
http://spsinghamaur.blogspot.in/
 — with Rajan Varma and Ram Saran Singh.

Photo: कलम से____

ईद के चाँद हुइ गइल हो कंहा रहत हो भाई?

का हो गुलरी के फूल हो गईल हउवा?

हाल यार का पूछने का अन्दाज गजब है
दिल मेरा लुट गया है मिला बडा सुकून है।

मासूमियत टपकती है अदांजे वयां में
मिलेगा प्यार इतना कहाँ इस जहां में।

कुरबान हूँ मैं तुम्हारी इन अदाओं पर
मिलेगा चैन नहीं कहाँ तुम्हें छोड कर।

हमरे बप्पा, हमरे कक्का यहीं दफन हैं
हम न जाइब अपनी धरती छोड कर।

मंजूर है मरना यहाँ, दफ्न हो जाएगें यहीं
जाएगें और कहीं न, हमारा वतन है यही।

//surendrapalsingh//
08 13 2010
http://spsinghamaur.blogspot.in/
  • Rajan Varma 'का हो गुलरी के फ़ूल हो गईल हउवा; मासूमियत टपकती है अंदाज़े बय़ाँ में'- यही ससुरा अपनापन तो छौड़े न देव अपने वतन कौ; कुरबान आपकी इस अदा पर- बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति
    8 hours ago · Unlike · 4
  • S.p. Singh अब आप सो सकते हैं।
    इस रचना पर काम करते समय मैं बहुत भावनाओं से घिरा हुआ था। पता नहीं सब ठीक होगा या नहीं।
    पर अतं भला तो जग भला।
    इसमें मुझे आपकी भाभी जी का पूर्ण सहयोग मिला। गुलरी वाला जुमला उन्होंने ही दिया था।
    8 hours ago · Edited · Like · 3
  • Rajan Varma सर आपकी भावनाऐं कलम राहीं निजात पा कर आपको सुखी कर जाती हैं अौर हमारी टीका-टिप्पणी द्वारा; नमन
    8 hours ago · Unlike · 3
  • S.p. Singh देखिए और मित्रों की क्या टिप्पणी मिलती है।
    8 hours ago · Like · 2
  • BN Pandey SIR ES SWATANTRATAA DIWAS KE AWASAR PER LIKHI GAYI AAP KI ZAZBAAT GAGAR ME SAAGER HAI............EK SACHCHAA DESH PREMI JO APANE MOOL KO ABHI BHI APANE DIL ME BASAA KER RAKKHAA HOGA WAH ESE PERH KER BERBUS BHAVUK HO UTHEGAA..............AAP NE TO AAJ HUM KO HUMI SE MILAA DIYAA .........BAHUT BAHUT SAADHUBAAD SIR JAI HIND
    7 hours ago · Edited · Like · 2
  • S.p. Singh धन्यवाद पांडे जी।
    मैं हिल गया था जब मैंने यह कविता खुद पढी थी।
    पता नहीं आज कलम से ___ से यह कविता बन कैसे गई।
    7 hours ago · Like · 1
  • BN Pandey SIR MAA SARSWATI KAA AAP ME VAAS HAI.SUB VAHI KARAATI HAI..ES RACHANAA KO MAI BAAR -BAAR PERH RAHAA HU..
    7 hours ago · Unlike · 2
  • Harihar Singh हमरा वतन है यही ।बहतरीन अन्दाज।See Translation
    7 hours ago · Unlike · 1
  • S.p. Singh गूलर पर कुछ महत्वपूर्ण जानकारी :-

    गूलर (Ficus racemosa) फिकस कुल (Ficus) का एक विशाल वृक्ष है। इसे संस्कृत में उदुम्बर, बांग्ला में हुमुर,मराठी में उदुम्बर, गुजराती में उम्बरा, अरबी में जमीझ,फारसी में अंजीरे आदम कहते हैं। इस पर फूल नहीं आते। इसकी शाखाओं में से फल उत्पन्न होते हैं। फल गोल-गोल अंजीर की तरह होते हैं और इसमें से सफेद-सफेद दूध निकलता है। इसके पत्ते लभेडे के से होते हैं नदी के उदुम्बर के पत्ते और फूल गूलर के पत्तों-फल से छोटे होते हैं |
    7 hours ago · Like · 3
  • Rajan Varma सामान्य-ज्ञान-वृद्धि के लिये आभार
    7 hours ago · Like · 2
  • BN Pandey EK SHABD PER SHAAYAD ETANI GAHAN JAANKAARI AAM LOGO KE BUS KI BAAT NAHI. DHANYBAAD SIR
    7 hours ago · Unlike · 2
  • S.p. Singh शुक्रिया ।
    7 hours ago · Like · 1
  • Chadha Vijay Kumar Ek Tu Hi Sabse Zyada Yaad Aati Hai,
    Ek Teri Dosti Hi Mere Dil Ko Bhaati Hai,
    5 hours ago · Unlike · 2
  • S.p. Singh बहुत खूब।
  • Lata Yadav bahut sunder
    5 hours ago · Unlike · 1
  • Arun Kumar Singh मजा आ गयल
    5 hours ago · Unlike · 1
  • Anjani Srivastava "हम न जाइब अपनी धरती छोड कर" > ना तुम दूर जाना, ना हम दूर जायेंगे,
    अपने अपने हिस्से कि 'फ़र्ज़' निभाएंगे.... 'ए वतन' तोहरे लिये !!
    See Translation
    5 hours ago · Unlike · 1
  • Rema Nair Ati sundar
    4 hours ago · Unlike · 1
  • Bhawesh Asthana खूब बढिया लागल, मजा आ गयील
    3 hours ago · Unlike · 1
  • S.p. Singh मझे प्रसन्नता है कि आपको यह कविता पसंद आई।
  • Kalpana Chaturvedi आपकी बढ़िया भावना ओं को साधुवाद।इन भावों का प्रसार भी हितकर है।
  • S.p. Singh धन्यवाद कल्पना जी।
  • S.p. Singh धरती से जुडे रहने का अहसास सुखद है पर अब यह भी कहीं पिछडे पन की निशानी न बन जाए। मुझे लगता है दिल को कचोटती हैं सिर्फ वही बातें जो अतीत से जुडी हुई हैं चाहे स्वाभाविक आज के जमाने में ना भी लगें।
    16 hours ago · Like · 2

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