Monday, October 31, 2016

डॉट com

डॉट कॉम-(.com)
दुनिया कितनी तेजी से बदल रही है कि हम कभी इसको देखने और पहचानने की कोशिश नहीं करते हैं पर यह बदलाव निरंतर जाने-अनजाने होते रहते हैं।
कौन जानता था कि जिस ‘डॉट’ की तरफ हम भारतवासी, वह भी विशेष रूप से हिंदी भाषा-भाषी जो कि अपनी भाषा को आम बोल चाल की भाषा के रूप लेकर पढ़ते या लिखते हैं, कभी व्याकरण के ऊपर ध्यान नहीं देते हैं उनके जीवन में भी यह 'डॉट' कितना महत्व रखता है। ठीक उसी प्रकार जिस तरह कि इंग्लैंड में अंग्रेजी भाषा का इस्तेमाल करते हुए आम बच्चे अपने बचपन से प्रौढ़ होते हैं तो ध्यान नहीं देते। पर हम भारतीयों को अंग्रेजी पढ़ाते वक़्त शुरू से स्कूल और घर पर भी व्याकरण पर अधिक जोर दिया जाता है। ऐसे अंग्रेजों की अंग्रेजी भी एक भारतीय के कानों को खटकती है क्योंकि हमें बचपन से ही व्याकरण संगत अंग्रेजी बोलनी और लिखनी सिखाई जाती है।
यह बात अबकी बार जब मुझे हमारी किताब 'बचपन के सुहाने दिन' जो कि भाई राम शरण सिंह जी और मैंने साथ-साथ लिखी है और श्री राम शरण सिंह जी की 'विविध रंग' की एडिटिंग करते समय ही पता चली कि डॉट का हिंदी भाषा में एक महत्वपूर्ण स्थान है। श्री राम शरण सिंह जी जो कि हिंदी के स्वयं बहुत बड़े ज्ञाता हैं और भारत सरकार द्वारा  पुरष्कृत भी हैं साथ ही साथ हिंदुस्तान एरोनॉटिक्स लिमटेड, बंगलुरू में हिंदी विभाग में कार्यरत रह कर कुछ महीने पहले ही मेरी तरह 'ठलुए' की केटेगरी में आ गए हैं, उन्होंने बताया कि '' और '' पर कहाँ नीचे डॉट लगाया जाना व्याकरण के हिसाब से आवश्यक है और कहाँ नहीं।मैं औरों की तो नहीं जानता पर अपने बारे में कह सकता हूँ कि हिंदी भाषा मेरे लिए एक आम बोल-चाल की भाषा ही बनी रही मात्र इसके कि अपने बाबूजी को यदा-कदा पत्र लिखते समय लिखित रूप में हिंदी का उपयोग हुआ या स्कूल में पढ़ते समय अपने हिंदी के इम्तिहान को पास करने के लिये। नौकरी करते समय अधिकतर अपना काम अंग्रेजी भाषा के उपयोग में ही निपट गया।अब तो लगता है कि धीरे-धीरे हिंदी भाषा का उपयोग लिखने-पढ़ने में समाप्त प्रायः हो जायेगा क्योंकि कंप्यूटर के बढ़ते उपयोग और मोबाइल की आवश्यकता जिस तरह आम जीवन में बढ़ती जा रही है वहाँ तो हिंदी की जगह बी रोमन हिदीं ही शार्ट मैसेजिंग और चैटिंग की भाषा रह जायेगी। कोई लाख कहे हिंदी सिर्फ़ किताबों में लिखने और पढ़ने की भाषा रब जायेगी।
हाँ, मोदी जी के प्रधान पंत्री के बनने के बाद अब हिंदी का उपयोग भाषणों और सरकारी कामकाज में  इधर कुछ बढ़ता हुआ दिख रहा है यह एक अलग सी बात है|
हाँ तो हम अपने मूल विषय पर लौटते हैं कि यह 'डॉट' अब इतना महत्वपूर्ण हो गया है कि वगैर इस 'डॉट' के जीवन लगता है आगे नहीं चलेगा। जहाँ देखो तो यह 'डॉट' लगा है। आम जीवन में यह 'डॉट' और 'डॉट कॉम' अब विशिष्ट हो गए हैं। किसी भी वेबसाइट का नामकरण करना हो तो 'डॉट कॉम' ( .com ) हिंदी में 'बढ़ता' या 'पढ़ता' लिखना हो तो यह 'डॉट' या 'नहीं' लिखना हो तो यह 'डॉट' कहाँ लगेगा या चंद्र बिंदी कहाँ लगेगी या नहीं?
 मैं भाई राम शरण सिंह जी का आभारी हूँ कि जिन्होंने इस 'डॉट' की महिमा के साथ-साथ मुझे यह भी बताया कि 'नहीं' शब्द में चंद्र बिंदी नहीं लगेगी और यह भी कि 'दुनिया' बस ऐसे ही लिखी जायेगी और 'डॉट' लगा कर कर 'दुनियां' या इस तरह इस तरह चंद्र बिंदी लगा 'दुनियाँ' लिखना सही नहीं है। और यह भी की शब्द आना-जाना या खाना-पीना के बीच में – (-) लगाना आवश्यक है| हालाँकि इस (-) ने एडिटिंग के वक़्त बहुत समय बरबाद किया क्योंकि की जहाँ भी (-) आया वहाँ मोबाइल से डाटा कंप्यूटर में न जाने क्या हो जात था कि cursor jump करने लगता था|
सही कहते हैं ज्ञान अर्जित करने की कोई सीमा नहीं होती है कोई उम्र नहीं होती है| हम जब कि अपनी मात्र भाषा की बात विशिष्ट रूप में करते हों तो जीवन के इस पड़ाव पर भी लगता है कि अभी बहुत कुछ सीखना बाकी है।
“विवध रंग” और “बचपन के सुहाने दिन” दोनों ही पुस्तकें तथा “रिंनी की कहानी” प्रथम एवं द्वितीय खंड  आप सभी निम्न पते से प्राप्त कर सकते हैं| कृपा कर निम्न लिखित  ‘ई मेल’ पर  संपर्क साधें:-
M/s Zephyr Entertainment Private Limited,
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धन्यवाद।