Friday, August 29, 2014

ड़ाली से टूट कर गोद में उनके जा गिरा सभंला अभी था नहीं मुहं से निकला हाय मैं मरा।

कलम से____

ड़ाली से टूट कर गोद में उनके जा गिरा
सभंला अभी था नहीं मुहं से निकला हाय मैं मरा।

पक जो गया था गिरना था लाजमी
गोद उनकी जो मिली मैं चोट से बच गया।

मुझे देखने आते हैं अब बाजार के कुछ लोग
खरीद कर ले जाने का इरादा करते हैं वो लोग।

मन नहीं करता है मैं जाऊँ कहीं अब और
रह जाऊँगा यहीं बनके मैं उनका सिरमौर।

पकने के बाद मैं मलिकन से ये कहूँगा
बीज वो दो पेड़ बनके फिर बाग में रहूँगा।

//surendrapalsingh//

http://spsinghamaur.blogspot.in/
 — with Puneet Chowdhary.
Photo: कलम से____

ड़ाली से टूट कर गोद में उनके जा गिरा
सभंला अभी था नहीं मुहं से निकला हाय मैं मरा।

पक जो गया था गिरना था लाजमी
गोद उनकी जो मिली मैं चोट से बच गया।

मुझे देखने आते हैं अब बाजार के कुछ लोग
खरीद कर ले जाने का इरादा करते हैं वो लोग।

मन नहीं करता है मैं जाऊँ कहीं अब और 
रह जाऊँगा यहीं बनके मैं उनका सिरमौर।

पकने के बाद मैं मलिकन से ये कहूँगा
बीज वो दो पेड़ बनके फिर बाग में रहूँगा।

//surendrapalsingh//

http://spsinghamaur.blogspot.in/
  • Rajan Varma 'आम की आभिलाषा'- सुन्दर वर्णन; विचित्र संयोग ही नज़र आता है मुझे 'मनुज अौर आम की अभिलाषा में'; मनुष्य भी अपने परिवार अौर स्वजनों के मोह-पाश में ता-उम्र इतना उलझा रहता है कि कब मृत्यू-आगोश में आ गिरता है इसका भान ही नहीं होता; उम्र कितनी भी हो जाये मरने का मन ही नहीं होता; अौर चूंकि आखिरी वक्त ध्यान/मन इन्ही पुत्र/पीत्रौं में उलझा होता है तो अगले जन्म का बीज इन्ही के आस-पास ही बोया जाता है- जैसे 'आम की अभिलाषा'
  • Arun Sharma अति सुंदर रचना जी " गोद उनकी मिली जो ..................See Translation
  • Anjani Srivastava सुप्रभात, सर जी ! "पकने के बाद मैं मलिकन से ये कहूँगा बीज वो दो पेड़ बनके फिर बाग में रहूँगा" स्वजनों का प्रेम सुंदर अभिलाषा...... दिन आनंद मय हो ....... हसरतें पूरी हो ना हो ,ख़्वाब देखना तो कोई गुनाह नहीं है.......See Translation

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