Saturday, November 29, 2014

यह भी कोई जिन्दगी है।

कलम से____

कितनी फुर्सत में इन्सान रहता था
आराम से उठता था
खाता था पीता था
ऐसी भागदौड न थी
जो आज देखने को मिलती है
अपनी सामाजिक और पारिवारिक
दोनों जिम्मेदारियों का निर्वहन
बड़े आराम से करता था
मिलना जुलना सभी से होता रहता था।
याद है मुझे, हमारे घर उन्नीससौ पचास के दशक से ही
हिन्दुस्तान अखबार आया करता था
बाबूजी दिन में कम से कम
दो तीन बार पढ़ जाया करते थे
खबरों पर अपने मित्रों से गुफ्तगू भी करते थे
तब घर में हमारी माँ कुछ नहीं कहतीं थीं
आज आप अखबार पूरा भी पढ़ नहीं पाते हैं
इल्जाम सर यह रहता है
कि दिन भर अखबार ही पढते रहोगे
कुछ घर की भी चिंता है
कभी यह पूछा है कि घर यह कैसे चलता है
यह कहानी हर घर की है
कहीं सीधी, कहीं टेड़ी है।
आजकल के बच्चे तो बच्चे
अब तो बूढे भी दिन भर
फेसबुक और मोबाइल से चिपके रहते हैं
घरवाले यह देख कर नाराज होते हैं
अक्सर कहते हैं
यह भी कोई जिन्दगी है।

//सुरेन्द्रपालसिंह © 2014//
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  • Harihar Singh बहुत सुन्दर।बहतरीन उदगारSee Translation
    17 hrs · Unlike · 1
  • Ram Saran Singh परिवर्तन जीवन का हिस्सा है । इसे स्वीकार करना चाहिए । महोदय ।
    16 hrs · Unlike · 1
  • Rajan Varma वोह दिन अब दूर नहीं,
    जब अख़बार इतिहास हो जायेगी;
    फ़ैबलेट अौर टैबलेट आम हो जाऐंगे,
    सारा व्यापार स्मार्ट मोबाइल से हो जायेगा;
    तब घर बैठने पर नहीं होगी कोई पाबंदी,
    सब्ज़ी, आटा-दाल भी घर बैठे ही आायेगी;
    16 hrs · Unlike · 1
  • Anand H. Singh Sunder likha hai,sir ji.See Translation
    14 hrs · Unlike · 1
  • SN Gupta अतिसुन्दर भाव
    13 hrs · Unlike · 1
  • Javed Usmani सही कहना है , मनुष्य का खुद तक सिमटना एक दुखदायी स्थिति है इस मानसिकता के निर्माण मात्र व्यक्ति दोष ,आत्म विस्मृति, आत्ममुग्धता , अपनी खोज तक नहीं सीमित है , प्रदूषित सामाजिक ,आर्थिक माहौल उत्प्रेरक की भूमिका में हैं ,See Translation
    12 hrs · Unlike · 1
  • Ranvir Bhadauria अत्यंतसुन्दरSee Translation
    2 hrs · Like
  • S.p. Singh सभी मित्रों का तहेदिल से शुक्रिया।
    1 hr · Like

जो न बोलते हैं

कलम से____
जो न बोलते हैं, न कुछ सुनते हैं, बुत से बने रहते हैं
फिर भी फरियाद लिए उनके सामने हम खड़े रहते हैं !!!
//सुरेन्द्रपालसिंह © 2014//
— with Puneet Chowdhary.
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