Monday, September 28, 2015

झोंपड़ी के टक्कर में हवेली हार जाती है !!!



जिंदगी कहीं जीतते जीतते हार जाती है
जिदंगी कहीं हारते हारते जीत जाती है
कमरों में रहने वाले बेफिक्र सुख़नवर
झोंपड़ी के टक्कर में हवेली हार जाती है !!!



©सुरेंद्रपालसिंह  2015
http://spsinghamaur.blogspot.in/

दिल की बातें दिल ही जानें

कलम से____


दिल की बातें
दिल ही जानें
तू माने या ना माने
धड़क धड़क कर
चलता रहता
पल पल
जीवन चलता रहता
दिये की बाती
सा जलता रहता
बुझने के पहले
फक फक करता
हँसते गाते चेहरों को भी
रुआंसा कर जाता
दिल की बातें
दिल ही जाने
या फिर तू जाने.....


©सुरेंद्रपालसिंह  2015
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तूफान सा है उठ्ठा किसी कोने में



तूफान सा है उठ्ठा किसी कोने में
बस ख़ाक होना वाकी है मुकाम मेरा ।


©सुरेंद्रपालसिंह  2015
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आज भी बिखरे हैं रास्ते में अश्क़ मेरे,

आज भी बिखरे हैं रास्ते में अश्क़ मेरे,
पिछली बरसात में छोड़ गया था कोई .............

कल तक तो वो अपना सा लगता था
कहने लगा अब न उठा पाऊँगा बोझ तेरा
तू रह यहाँ मैं कहीं और चला जाऊँगा
पिछली बरसात में छोड़ गया था
जाते हुये ज़ख्म गहरा दे गया था
यदाकदा दिख जाते हैं निशान उसके
आज भी बिखरे पड़े हैं राह में अश्क तेरे

©सुरेंद्रपालसिंह  2015
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बैचेनी के आलम में नींद कहाँ आती है




बैचेनी के आलम में नींद कहाँ आती है
याद तेरी जब भी आती है
बहुत तड़पा जाती है !!!

©सुरेंद्रपालसिंह  2015
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हम चाँद तारों की बात करते है



हम चाँद तारों की बात करते है
खुले आसमान में उड़ान भरने की बात करते हैं
वो हैं इक ज़मीन पर हक़ छोड़ने की बात करते हैं
हम ज़मीनी हक़ीक़त की बात करते हैं
वो मालिक को नौकर बनाने की बात करते हैं
समझा है क्या तुमने इसे इतना आसां
गिरेबां में हाथ डालकर देखो वादे निभाए हैं कितने
जो मुकद्दर बदलने की बात करते हो.......

©सुरेंद्रपालसिंह  2015

चलूँगा मैं जब साथ तुम मेरा देना



चलूँगा मैं जब
साथ तुम मेरा देना
कभी आगे
कभी पीछे
सदा साथ तुम रहना
कुछ यही कहा था तुमने
मिले थे जब हम इस जहां में
रहेंगे साथ हम सदा
इक दूजे के लिए......

फिर यह आवाज कैसी उट्ठी है
क्यों हमारे पीछे दुनियां पडी है
जीने नहीं देते हैं दुश्मन मेरी जां के
आ जाते हैं सामने नित नये नाम लेके
कभी राम कभी रहीम बनके
रहने दे हमें तू इन्सान बनके।

©सुरेंद्रपालसिंह  2015
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का से कहूँ मैं अपने मन की बात



का से कहूँ मैं अपने मन की बात
कोई नहीं है पास बीती जा रही है रात
जन्मजन्मातंर का है तेरा मेरा साथ
तूने भी प्रभु सुनी न मेरी कोई बात
दर्शन देकर कर दो मुझे निहाल
बंदा तेरे दर पे है पड़ा हो निढ़ाल 

©सुरेंद्रपालसिंह  2015

बस यूँही समझ लो जिदंगी हम जीते रहे !!



यूँ समँझ लो....
प्यास लगी थी गज़ब की
मगर पानी मे ज़हर था
देदी जो होती थोड़ी सी शराब
पल दो पल के ही लिये
जिंदगी तो जी लेते जनाब....

पीते तो मर जाते
और ना पीते तो भी मर जाते
ग़म तो नहीं मनाता ये जमाना
बस आता कभी कभी रुलाना
बस यही दो एक मसले,
जिंदगी भर ना हल हुए !!

ना नींद पूरी हुई,
ना ख्वाब मुकम्मल हुए !!
बस यूँही समझ लो
जिदंगी हम जीते रहे !!

जो सूख गये जल गये



जो सूख गये जल गये
जल के खाक़ वो हो गये !!

चलती फिरती है ये दुनियां यारो
जो जी गये वो भवसागर तर गये !!

©सुरेंद्रपालसिंह  2015
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मौसम अचानक बदल जाये,





कलम से____

मौसम अचानक बदल जाये,
हवाओं के रुख का कुछ पता नहीं लगता।

अपने वादे से वो पलट जायें,
हसीनाओं के रुख का कुछ पता नहीं लगता।

हँसते हँसते रूठ वो जायें,
उनके मूड का कुछ पता नहीं लगता।

निगाहें अपनी नीचीं वो करलें,
इज़हारे इश्क कैसे हो कुछ पता नहीं लगता।

रुखसती का एलान हो जाये,
जिंदगी में कब क्या हो कुछ पता नहीं लगता।

©सुरेंद्रपालसिंह  2015

मैं जब थक जाऊँ


मैं जब थक जाऊँ
           तब तुम मुझे सहारा देना।
मैं जब दृष्टिहीन हो जाऊँ
           तब तुम मेरी दृष्टि बन जाना।
मैं जब निढ़ाल हो गिर जाऊँ
           तब तुम मेरी शक्ति बन जाना।
मैं जब निर्बल हो जाऊँ
           तब तुम मुझे संबल देना।
मैं जब अकेला रह जाऊँ
           तब तुम साथ मेरा देना।
मैं जब बोल न पाऊँ
           तब तुम स्वर अपना देना।
मैं जब अकेला होऊँ
           तब तुम मेरे साथ ही रहना।
मैं जब कुछ न कह पाऊँ
           तब तुम शब्द मेरे बन जाना।
मैं जब जाने को कहूँ
           तब तुम मुझे हँसके अलविदा कहना।



©सुरेंद्रपालसिंह  2015
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हाथ दोस्ती का हर बार हमने जब जब है बढ़ाया




हाथ दोस्ती का हर बार हमने जब जब है बढ़ाया
हर बार धोखा ही तेरे हाथों है खाया
बड़े भाई होने का फर्ज़ था हमने जो बखूबी निभाया
संभलने के मौके अब न आयेंगे यारा
मौला भी तुझे अब बचा न पायेंगे जाना....



©सुरेंद्रपालसिंह  2015
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न जाने कौन हर रोज़ आके मेरे पास बैठ जाता है




न जाने कौन हर रोज़ आके मेरे पास बैठ जाता है
पीठ थपथपा के सुला वो जाता है 
कानों में मधुर गीत घोल जाता है
वादा फिर मिलने का रूह से कर जाता है



©सुरेंद्रपालसिंह  2015
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खामोश तुम हो



कलम से____

खामोश तुम हो
बेचैन हम
उदास तुम हो
परेशान हम
क्या है रिश्ता
तेरे मेरे बीच
खामोशी तेरी उदासी तेरी
प्रश्न जो मेरे लिए बन जाती है
याद तेरी हर पल
क्यों सताती है.........


©सुरेंद्रपालसिंह  2015
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शाम होते ही शाम का नशा चढ़ने है लगता



शाम होते ही शाम का नशा चढ़ने है लगता 
 इन्सान हैवान सी बातें क्यों है करने लगता
नशा बोतल में होता तो बोतल बोलती यारो
हर तरफ से आवाज कैसी आरही है मारो मारो !

बिकती है दुकान पर विलायती औ' देशी भी
चौइस है आपकी पसंद आती है आपको कौनसी
दिखने में हो जो हसीन जरूरी नहीं मजेदार ही होगी
बाज़ार में बिकती है जो ज्यादा असरदार नहीँ होगी !

कच्ची प्याज के साथ गले से उतर है जाती
लगा दी है आग बाजार में नज़र नहीं आती
सस्ता है आज के दिन मुर्गमुसल्ल खा लेना
दाल ढूँढने से भी बाजार में नज़र नहीं आती !

पीने जो बैठे हो आज छक के लो पी यारा
नहीं है पता कोई कल नसीब हो या न हो
मार महगाई की अजीब पड़ी जोर है की
खुशी जो है नसीब में आज कल हो न हो !

जो पी है मय आँखो से उसका कोई सानी नहीं है
सबको मिल जाये चाहत अपनी ऐसा नसीब नहीं है
जो भी आता है यहाँ मारा ग़म का होता है
ग़म मिटाने को बेसहारा का सहारा होता है !


©सुरेंद्रपालसिंह  2015
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महँगेवाला दुशाला उतार कर कभी





महँगेवाला दुशाला उतार कर कभी
दुनियां मेरी भी देख लो
प्यार है बहुत इस जहां में
आके कभी मुझे देख लो...



©सुरेंद्रपालसिंह  2015

लफ्जों में जो न कह सके



लफ्जों में जो न कह सके अपने मन की बात
चंद लम्हों की मुलाकात में नयन खुद ब खुद कह गये !!

©सुरेंद्रपालसिंह  2015
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Sunday, September 27, 2015

इक आइने सा साथ निभाती रही



इक आइने सा साथ निभाती रही
जिदंगी हकीकत बयान करती रही
ठहराव जब कुछ अब मिल गया है
बिछड़ा कोई अपना दिख गया है.......



©सुरेंद्रपालसिंह  2015
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जिक्र क्या करूँ उन यादों का




जिक्र क्या करूँ
उन यादों का
जो पीछे छूट गईं
जिदंगी के सफर में
इक जगह टिक पाए नहीं
शहर दर शहर
दर बदर बदलते रहे
कभी इस जगह
कभी उस जगह
ठिकाना बदलते रहे
खाने कमाने में लगे रहे.....

©सुरेंद्रपालसिंह  2015
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लंबे अरसे तक



लंबे अरसे तक
टाई की नाॅट
कैसे बांधते हैं
नहीं सीख पाया
मित्र इक दिन आया
कहने लगा छोड़ भी
क्या करेगा सीख कर?
टाई की नाॅट बांधने वाली
खाना बनाके देने वाली
तेरा ख्याल रखने वाली
हमसफर तेरी होनेवाली
सब काम कर देगी
बस तू माँ को बता दे
शादी वो तेरी करा दे !
कुछ दिन तक तो सब ठीक रहा
खाना गरमागरम मिलता रहा
सिर दर्द का बहाना भी बना दूँ
जानेमन सिर भी दबाता रहा
अब यह आलम है कि
घर का काम करता हूँ
नाराज हो जायें अगर
पैर तक उनके दबाता हूँ
जिदंगी दो पाट के बीच पिस रही है
टाई की नाॅट ढ़ीली ही लग रही है
किस चक्कर में फंस गया हूँ मैं
दिन को रात औ रात को दिन कह रहा हूँ !



©सुरेंद्रपालसिंह  2015
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आजाओ आँख मूँदें आगोश में




आजाओ आँख मूँदें आगोश में
ले आया हूँ मैं चांदी सी बूँदें
भीगेंगे आज हम बरसात में
हाथ आप दीजिये मेरे हाथ में
टोकिए न हमें न इस काम में
भीगेंगे आज हम बरसात में.....



©सुरेंद्रपालसिंह  2015
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जिक्र करते हैं दुश्मन मेरी जां के तेरे अफसानों में


जिक्र करते हैं दुश्मन मेरी जां के तेरे अफसानों में
बागवां फूल पिरो लाया है तलवारों में !

हुस्न बेगाना होकर दर्द बड़ा दे जाता है
गुन्चे बागों में खिलके बिक जाते हैं बाज़ारों में !

तेरे चेहरे का रंग चुरा लाये हैं गुल गुलज़ारों से
जल रहा हूँ मैं इस भरी बरसात की बौछारों में !


©सुरेंद्रपालसिंह  2015
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सुन ली जातीं हमारी प्रार्थनाएँ



सुन ली जातीं हमारी प्रार्थनाएँ
तो सूर्य उदय से पहले
लाल नहीं दिखता
पत्ते कभी पीले नहीं होते
नहीं छिपाना पड़ता नारियल को अपनी सफ़ेदी
नाटक के सारे पात्र
पत्थरों में आत्मा का संचार करते
नदियाँ रोती नहीं
और समुद्र हुंकार नहीं भरते
शब्द बासी नहीं पड़ते और
संदेह के दायरे से प्रेम हमेशा मुक्त होता
स्वप्न हुकूमतों के मोहताज नहीं होते
बुलबुले फूटने के लिए जन्म नहीं लेते
धरती की सुगबुगाहट और प्रकृति की भाषा
साधारण और गैर जरूरी चीज़ों में शामिल नहीं होतीं
एकाकीपन के सारे हौसले पस्त होते
एक डरी और सहमी दुनिया में
हमारी प्रार्थनाएँ सुन ली जातीं
तब शायद चूक जाता मैं
कवि होने से !

©सुरेंद्रपालसिंह  2015
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एक दिन और ढेर

एक दिन और ढेर
हो गया
जिन्दगी
एक सीढी
और चढ़ गई
कुछ खुशी मिली
कुछ अधूरी रह गई।
यही जीवन है
चलता रहे
चक्र जीवन का
पिसता हुआ इन्सान
भागता हुआ
कभी अदृश्य
कभी साफ तौर पर दिखते
लक्ष्य
का पीछा करता हुआ।
आज नया सवेरा
आया है
दिल फिर
भरमाया है
जागो मेरे प्यारे जागो
अलसायेपन को छोडो
मस्त पवन बह रहा है
बगिया में कोई बुला रहा है
चलो उसका पीछा करो
थोडी दूर ही सही
उसके साथ चलो
थक कर बैठो नहीं
दम भर प्रयास करो
चले चलो चले चलो।
अब कल फिर परसों
की तैयारी करो
कान्हा आने वाला है
अष्टमी को मिलन
हमारा होने वाला है।
चलते रहो चलते रहो।



©सुरेंद्रपालसिंह  2015
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तहखाने में जो छिपा रखा है उसे लुटा दे




तहखाने में जो छिपा रखा है उसे लुटा दे
दिल में क्या छिपा रखा है उसे भी बता दे।
लाये ही थे क्या साथ जो लेके है जाना
है जो दौलत उसे खुले हाथों से लुटा दे।

©सुरेंद्रपालसिंह  2015
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जैसी भी हूँ मैं, सामने हूँ तुम्हारे

जैसी भी हूँ मैं, सामने हूँ तुम्हारे
तंग ख्याल हैं नहीं मेरे
खुले दिल दिमाग वाली हूँ
साथी मेरे कहते हैं अक्सर
वक्त की रफ्तार से आगे चलने वाली हूँ
बुरा नहीं लगता है मुझे
कोई मुझसे भी आगे चलके दिखाता है
बस मैं अपने आसपास की चीजों में
उलझी रहती हूँ
मुझे लगता है अच्छा
जब तुम,
और सिर्फ तुम, ख्यालों में रहते हो
हाँ, कभी आते हो, कभी जाते हो
सावन के बदरा से।
मैंनें कब कहा हटा दो उसे
जो ख्यालों में तुम्हारे रहती है
वह मैं ही तो हूँ
मेरा ही हम साया है
तुमको जो मेरा साये सा लगता है
जहाँ भी रहोगे तुम
सदा रहूँगी आसपास मैं
सांसों में घुल गई हूँ मैं
हर सांस में रहूँगी मैं
तुम्हारी बनके सदा.....


©सुरेंद्रपालसिंह  2015
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लगता रहा काश कोई अपना होता




लगता रहा काश कोई अपना होता
हमदर्द होता
पता ही न लगा
किस वक्त जीवन में वो आ गया
जिदंगी भर साथ निभाने का वादा हो गया
कुछ दर्द बटोर साथ वह चला
कुछ दर्द जीवन भर के दे गया...


©सुरेंद्रपालसिंह  2015
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तेरे आने के खयाल भर से




तेरे आने के खयाल भर से
इन आँखों में चमक आ जाती है
यादें ही हैं जीने का सहारा मेरा,
जब भी आतीं हैं, रुला जातीं हैं।


©सुरेंद्रपालसिंह  2015
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जिदंगी भी क्या अजीबोगरीब रंग दिखाती है





जिदंगी भी क्या अजीबोगरीब रंग दिखाती है
लगे जब मंजिल करीब दूर क्यों होती जाती है
वो चलके पास आयें समझो मंजिल पासआ गई
मौत आजाये करीब समझो जिदंगी मंजिल को पंहुच गई !!



©सुरेंद्रपालसिंह  2015
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मुस्कुराहट तेरे होठों की मुझे,





मुस्कुराहट तेरे होठों की मुझे,
अपनी मंजि़ल का पता देती हैं
दूर रहके चोट पर चोट करती हो
पास आती हो तो जान लेती हो...
कैसी हो तुम जो रूह से
रूठने की बात करती हो.....


©सुरेंद्रपालसिंह  2015
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जैसी भी हूँ मैं, सामने हूँ तुम्हारे



जैसी भी हूँ मैं, सामने हूँ तुम्हारे
तंग ख्याल हैं नहीं मेरे
खुले दिल दिमाग वाली हूँ
साथी मेरे कहते हैं अक्सर
वक्त की रफ्तार से आगे चलने वाली हूँ
बुरा नहीं लगता है मुझे
कोई मुझसे भी आगे चलके दिखाता है
बस मैं अपने आसपास की चीजों में
उलझी रहती हूँ
मुझे लगता है अच्छा
जब तुम,
और सिर्फ तुम, ख्यालों में रहते हो
हाँ, कभी आते हो, कभी जाते हो
सावन के बदरा से।
मैंनें कब कहा हटा दो उसे
जो ख्यालों में तुम्हारे रहती है
वह मैं ही तो हूँ
मेरा ही हम साया है
तुमको जो मेरा साये सा लगता है
जहाँ भी रहोगे तुम
सदा रहूँगी आसपास मैं
सांसों में घुल गई हूँ मैं
हर सांस में रहूँगी मैं
तुम्हारी बनके सदा.....


©सुरेंद्रपालसिंह  2015
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आप हमसे काश मिले होते



आप हमसे काश मिले होते
तो शायद हम सातवें आसमान पर होते
वक्त के साथ चलना सीखे होते
रेत पर दासतां अपनी हम लिखते
आगे आगे चलता मैं पीछे तुम रहते
परछाईं सी पीछे चलते तुम होते
मिलजुलकर जीवन की नैया खेते
नाव कागज की बना तैराया करते
सपने दिन में बुना करते
रातों को जागा करते
जीना किसे कहते हैं
जीके दिखाया करते........


©सुरेंद्रपालसिंह  2015
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रात देर सबेर



रात देर सबेर
खुलती है आँख जब भी
निकल पड़ता हूँ
नंगे पाँव ही चल पड़ता हूँ
ठंडी ठंडी जमीन पर
पाँव जब हैं पड़ते
लगता है जैसे आसमां पर चला हूँ
दूधिया तारों की चादर तले
चलता रहता हूँ यही सोच कर
पड़ोस से आवाज देगा कोई
बुला लेगा मुझको
करीब अपने बिठा कर
ज़िक्र अपनी तनहाई की करेगा
रुको जाते हो कहाँ अकेले अकेले
हम भी हैं तनहा रुक जाओ न यहाँ
पास हमारे रात भर के लिए
भोर होत ही जाना चले
जाना तुम्हें है जहाँ.....


©सुरेंद्रपालसिंह  2015
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जुबां खामोश ही रहेगी




जुबां खामोश ही रहेगी
आँखो में गर नमी होगी
यही एक दास्तां मेरी
बस ए जिदंगी होगी ।
चाँद मुंडेर पर बैठा हँसता है रहता
खिड़की के उस पार ही लटका है रहता
चाँदनी हौले हौले आँगन में आज आई है
तनहाई जीने से उतर फिर आई है
कैसे कह दूँ कि तू मुझे याद नहीं आई है......

©सुरेंद्रपालसिंह  2015
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ऐसे तो न देखो




ऐसे तो न देखो
हम तो लुटाये बैठे हैं अपना सारा जहां
अपना कुछ और अब बचा ही है कहां !!!
टूटे हुये पैमाने में कभी जाम नहीं बनते
हो जो गये आम कभी ख़ास नहीं बनते
उजड़े चमन में कभी गुल नहीं खिलते
बिछ़ड़े जो इक बार दुबारा नहीं मिलते !!


©सुरेंद्रपालसिंह  2015
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एक उलझन है जो




एक उलझन है जो
परेशानी का सबब बनी रहती है
इनसान होकर भी क्यों नहीं हम
पहचान पाते हैं इनसानों को
कुछ रिश्ते तो ऐसे होते होंगे
जहां हर पहचान
पुरानी सी नज़र आती होगी
हम आज इकदूजे की
आँखों की गहराइयों में झांक कर देखें
क्या हम ही वहाँ रहते हैं.....
कल सबेरा सूरज फिर लेके आएगा
फिर से परेशानी का सबब पूछेगा
आज के इतना ही काफी है
तुम हो यहाँ
और मैं भी हूँ यहाँ
ढूँढ़ता हुआ कल फिर बढ़ चलूँगा
एक नया सवेरा .....


©सुरेंद्रपालसिंह  2015
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बेपरवाह हैं




बेपरवाह हैं ये अंधेरे न खुद की खबर है इन्हें न उनकी 
मैं अपने दिल की क्या कहूँ न सुबह की फिक्र है न शाम की .....



©सुरेंद्रपालसिंह  2015

Thursday, September 3, 2015

ताउम्र काटा किये फसल ख़ून की नफ़रत के बीज कुछ वो ऐसे बो गये।

कलम से_____

ताउम्र काटा किये फसल ख़ून की
नफ़रत के बीज कुछ वो ऐसे बो गये।
बेगुनाह कैद में रहे जुल्म किये बगैर
दाग़ किसके आके समंदर धो गये।
देख कर मज़बूरी इन्सान की
शाम से ही पहले परिन्दे सो गये।
ढूँढा किये उन्हें दिन-रात परीशां हो गये
मंजिल मिली तो रास्ते खो गये।
यादें अनगिनत साथ यूँही चल पड़ीं
एक हम हीं थे जो बीच में राह भूल गये।

©सुरेंद्रपालसिंह 2015
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इतना क्यों मुस्कुरा रहे हो



इतना क्यों मुस्कुरा रहे हो
राज़ क्या है जो छिपा रहे हो
ज़ाहिर कर दो तो हम जानें
मन ही मन गज़ल जो गुनगुना रहे हो...
©सुरेंद्रपालसिंह 2015
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— with Puneet Chowdhary.
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