Saturday, July 26, 2014

कलम से _ _ _ _

हम न जाइब आज उनसे मिलन का
रात किहन हैं बहुत वो परेशान हमका
सारी सारी रतियां जगाये वो हमका
अखियां दुखाय रहीं नीदं आवे हमका।

वैरी बलमवा के हैं नखरे हजारवा
दूजे वो बैठिल है आसमां निहारतवा
कभी छेडत है वो चादं के बहनियां
बात खूब करत हैं छकावत हमनियां।

सारी सारी जगावत हैं बलम हमका
हमारे लये लियायल हैं सुदंर सा झमका
हम बोलिन रहे बहुत शुक्रिया उनका
बोले, रात आपन बनाय लेउ हमका।

सावन की रतियां न ऐसे कटेगीं
नीदं अंखियन की परेशान करेगी
काम खतम कर लो सासूमा कहिन हैं
ननदी रानी दिन भर ताने कसत हैं।

देवर जी पूछत हैं हाल हमरे दिलका
उनका न बताइब का करे है बलमवा
आज रात न जाइब उनके करीबवा
सोवन देगें आज हम अकेले उनका।

(बृज भाषा तो मेरी मातृभाषा है। मन कर रहा था कि अपने प्रदेश के भिन्न भिन्न स्थानों पर निवास का मौका जो मिला आज उसका कुछ कर्ज उतारूं। नहीं कह पा रहा कि यह रचना किस लोकल डायलेक्ट में बन पाई है।पसंद आए तो आशीर्वाद अवश्य दें।)

//surendrapal singh//

07272014

http://1945spsingh.blogspot.in/

and

http://spsinghamaur.blogspot.in/
 — with Puneet Chowdhary.
Photo: कलम से _ _ _ _

हम न जाइब आज उनसे मिलन का
रात किहन हैं बहुत वो परेशान हमका
सारी सारी रतियां जगाये वो हमका
अखियां दुखाय रहीं नीदं आवे हमका।

वैरी बलमवा के हैं नखरे हजारवा
दूजे वो बैठिल है आसमां निहारतवा
कभी छेडत है वो चादं के बहनियां
बात खूब करत हैं छकावत हमनियां।

सारी सारी जगावत हैं बलम हमका
हमारे लये लियायल हैं सुदंर सा झमका
हम बोलिन रहे बहुत शुक्रिया उनका
बोले, रात आपन बनाय लेउ हमका।

सावन की रतियां न ऐसे कटेगीं
नीदं अंखियन की परेशान करेगी
काम खतम कर लो सासूमा कहिन हैं
ननदी रानी दिन भर ताने कसत हैं।

देवर जी पूछत हैं हाल हमरे दिलका
उनका न बताइब का करे है बलमवा
आज रात न जाइब उनके करीबवा 
सोवन देगें  आज हम अकेले उनका।

(बृज भाषा तो मेरी मातृभाषा है। मन कर रहा था कि अपने प्रदेश के भिन्न भिन्न स्थानों पर निवास का मौका जो मिला आज उसका कुछ कर्ज उतारूं। नहीं कह पा रहा कि यह रचना किस लोकल डायलेक्ट में बन पाई है।पसंद आए तो आशीर्वाद अवश्य दें।)

//surendrapal singh//

07272014

 http://1945spsingh.blogspot.in/

and

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