Thursday, July 31, 2014

वैस देखा जाए तो इनसां ता उम्र बच्चा रहता है,

कलम से _ _ _ _

वैस देखा जाए तो इनसां ता उम्र बच्चा रहता है,
हालात ही कुछ ऐसे होते हैं वह बदला बदला सा लगता है।

छोटा होता है माँ को किलकारियाँ अच्छी लगतीं है
सकूल जाता है जब मिठाइयां मोहल्ले भर में बटतीं हैं।

थोडा जब और बडा वह होता है निगाहें उस पर लगी रहतीं हैं
आसपास की सुन्दरियां भी उसको तडा करतीं हैं।

बच नहीं सकता है वह इश्क मुश्क के चक्कर से
फंस ही जाता है आखिर किसी न किसी हसींना से।

शादी हो जाय तो मुबारक न हो तो निकालो चक्कर से
ढूंढ़ो एक अदद लडकी शादी के बन्धन के लिए चक्कलस से ।

खुशियों में डूब जाते हैं माता औ' पिता दोनों ही
आगई जो गई है घर में एक नई नवेली दुलहन सी।

धीरे धीरे जिदंगी अपनी राह चलती रहती है
दो से तीन फिर चार की गिनती बढ़ती है।

मुश्किलातों के बीच कभी हँसते तो कभी रोते जिंदगी चलती है
हौले हौले न चाहकर भी बंटवारे के द्वार जा खडी होती है।

अब कोई क्या करें क्या न करें समझ नहीं आता
हालात अच्छों अच्छों की बोलती बंद कर जाता।

हालात नाजुक होते जाते हैं काबू के बाहर जब हो जाते हैं
बेटा हरिद्वार की ट्रेन एक दिन माँ बाप को बिठा देता है।

यहां तक साथ निभा कोई बचपन में लौट जाता है
कोई अपने जीवन की आखिरी सांस गिनता है।

(राजन जी जो वादा किया था निभा रहा हूँ मैं। विचारों से अवगत कराइएगा।)

//surendrapal singh//

07 31 2014

http://1945spsingh.blogspot.in/

and

http://spsinghamaur.blogspot.in/
Photo: कलम से _ _ _ _

वैस देखा जाए तो इनसां ता उम्र बच्चा रहता है,
हालात ही कुछ ऐसे होते हैं वह बदला बदला सा लगता है।

छोटा होता है माँ को किलकारियाँ अच्छी लगतीं है
सकूल जाता है जब मिठाइयां मोहल्ले भर में बटतीं हैं।

थोडा जब और बडा वह होता है निगाहें उस पर लगी रहतीं हैं
आसपास की सुन्दरियां भी उसको तडा करतीं हैं।

बच नहीं सकता है वह इश्क मुश्क के चक्कर से
फंस ही जाता है आखिर किसी न किसी हसींना से।

शादी हो जाय तो मुबारक न हो तो निकालो चक्कर से
ढूंढ़ो एक अदद लडकी शादी के बन्धन के लिए चक्कलस से ।

खुशियों में डूब जाते हैं माता औ' पिता दोनों ही
आगई जो गई है घर में एक नई नवेली दुलहन सी।

धीरे धीरे जिदंगी अपनी राह चलती रहती है
दो से तीन फिर चार की गिनती बढ़ती है।

मुश्किलातों के बीच कभी हँसते तो कभी रोते जिंदगी चलती है
हौले हौले न चाहकर भी बंटवारे के द्वार जा खडी होती है।

अब कोई क्या करें क्या न करें समझ नहीं आता
हालात अच्छों अच्छों की बोलती बंद कर जाता।

हालात नाजुक होते जाते हैं काबू के बाहर जब हो जाते हैं
बेटा हरिद्वार की ट्रेन एक दिन माँ बाप को बिठा देता है।

यहां तक साथ निभा कोई बचपन में लौट जाता है
कोई अपने जीवन की आखिरी सांस गिनता है।

(राजन जी जो वादा किया था निभा रहा हूँ मैं। विचारों से अवगत कराइएगा।)

//surendrapal singh//

07 31 2014

 http://1945spsingh.blogspot.in/

and

http://spsinghamaur.blogspot.in/
  • You, Potty KcSatish PatelHarihar Singh and 18 others like this.
  • S.p. Singh Rajan Varma : 

    यह कविता आपके अवलोकनार्थ प्रेषित है वायदेनुसार।
  • Rajan Varma अति सुन्दर काव्य प्रस्तुति पेश की है सर अपने वायदे अनुसार- 'बिखरते परिवारों पर'; अौर गवाह के तौर पर पेश किया हरिद्वार को- बहुत खूब; मुझे याद आता है अपना बचपन जब मेरी माता श्री अपने चार बच्चों को ले कर, चार बर्तन अौर बोरी-बिस्तर बाँध कर जा धमकतीं थीं हर साल हर-मिलाप धर्मशाला में- गर्मियों की छुट्टियों में; अौर अब बच्चे परामर्श देते हैं माता-पिता को कि आपको बहुत पसंद था न हरिद्वार चलो छोड़ अांऊ- सदा के लिये; जाना तो वाया हरिद्वार (हरि-के-द्वार) ही है पर ऐसे मुनासिब नहीं है- ये बच्चों को समझना चाहिये कैसे हमारी हर छोटी-बड़ी खुशी के लिये माता-पिता ने अपनी जवानी का अधिकतम भाग तगं-हाली में गुज़र-बसर कर बिताया ताकि हमें आज वाला भविष्य मिल सके; बच्चे समय न दे पायें (समझ सकता हूँ कि उनकी भी अपनी व्यक्तिगत् जिन्दगी है)- पर क्या दो रोटी भी भारी पड़ गई? 
    माता-पिता को हरिद्वार नहीं बच्चों, तुम्हारा कान्धा चाहिये- जब दुनिया 'राम-नाम सत्य है' बोलती हुई उन्हें हरि-के-द्वार तक की अंतिम यात्रा हेतू ले जायेगी; बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति संदेश की
  • S.p. Singh बहुत ही मनमोहक एवं भाव्यात्मक विवेचना प्रस्तुत की है आपने।
    मैं यहाँ कहना चाहूँगा कि कविता की कुछ मजबूरियाँ होती हैं।
    परंतु आप जैसे महानुभावों की विवेचनाओ से उसका मूल्य बढ जाता है।
    बहुत बहुत धन्यवाद।
  • BN Pandey SAPANE BENCH KER JISANE PARIWAAR PAALE, VO BHUKHAA SO GAYAA JUB BACHCHE KAMAANE WAALE HO GAYE...........LAHAZAA MITAA, MIZAAZ NARAM AANKHO ME SHARAM... SUB BENCH KHAAYE JUB VE SHAHAR WAALE HO GAYE.........
    22 hours ago · Unlike · 3
  • S.p. Singh हर गांव और शहर के हर परिवार की यही कहानी है।
    22 hours ago · Like · 2
  • BN Pandey BILKUL SIR. MAA-BAAP BARE DULAAR SE APANAA SUB KUCHH DAAV PER LAGAA KER PARHATE HAI.......LEKIN JYAADA TER GHAO KI AB YAHI KAHAANI HAI.
    22 hours ago · Unlike · 2
  • S.p. Singh राजन जी।
    हरिद्वार का जिक्र इसलिए भी बनता था चूकिं वहां वानप्रस्थ आश्रम ज्वालापुर में है। दूसरा मेरे जीवन के पांच बेहतरीन साल बीएचईएल में 1967-72 तक गुजरे हैं।
    21 hours ago · Like · 1

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