Monday, July 14, 2014

Multistory Flats

कलम से _ _ _ _

13th July, 2014

माचिस की डिबिया से बाहर आने को मन करता है,
बंद कमरों में रहने में अब दम घुटता है,
खुले आसमान के नीचे आगंन में सोने को मन करता है,
नहीं सुहाती पंखे के नीचे हवा बदन ऐंठा करता है।

खटिया बिछी हो मेरी छत पर,
खुले गगन के नीचे सोने को मन करता है,
आधी आए या आए तूफान,
एक बार आखं लग जाऐ,
फिर चाहे कुछ भी हो जाए,
सुबह अंधेरे ही आखं खुलती हैं,
सुबह सुबह की पुरबइया मन को हर लेती है।

नीम की डाली तोड,
दतून करने का अपना ही सुख है,
टूथपेस्ट से मंजन करने में,
वो आनंद कंहा है।

पेट भले ही भरता हो आधा,
मन शान्त बहुत रहता है,
रहते सब हंस मिल कर,
दिल में रहे न कोई बाधा।

राम राम करते सब इक दूजे को,
राधे राधे कहते रामू काका सबको,
कुल्लू मियां कहते आदावअर्ज है,
राम सिंह बोले सतश्रीआकाल,
श्रद्धाभाव का यहां नहीं कोई अकाल।

http://1945spsingh.blogspot.in/2014/07/blog-post.html
 — with आशीष कैलाश तिवारी and 46 others.
Photo: कलम से _ _ _ _

13th July, 2014

माचिस की डिबिया से बाहर आने को मन करता है,
बंद कमरों में रहने में अब दम घुटता है,
खुले आसमान के नीचे आगंन में सोने को मन करता है,
नहीं सुहाती पंखे के नीचे हवा बदन ऐंठा करता है।

खटिया बिछी हो मेरी छत पर, 
खुले गगन के नीचे सोने को मन करता है,
आधी आए या आए तूफान, 
एक बार आखं लग जाऐ, 
फिर चाहे कुछ भी हो जाए, 
सुबह अंधेरे ही आखं खुलती हैं,
सुबह सुबह की पुरबइया मन को हर लेती है।

नीम की डाली तोड, 
दतून करने का अपना ही सुख है,
टूथपेस्ट से मंजन करने में, 
वो आनंद कंहा है।

पेट भले ही भरता हो आधा, 
मन शान्त बहुत रहता है,
रहते सब हंस मिल कर,
दिल में रहे न कोई बाधा।

राम राम करते सब इक दूजे को,
राधे राधे कहते रामू काका सबको,
कुल्लू मियां कहते आदावअर्ज है,
राम सिंह बोले सतश्रीआकाल,
श्रद्धाभाव का यहां नहीं कोई अकाल।

http://1945spsingh.blogspot.in/2014/07/blog-post.html
  • Manish Sukhwal बहुत सुन्दरSee Translation
  • Rajan Varma 'माचिस की डिबिया से बाहर आने को मन करता है'- अति सुन्दर; बचपन के वो दिन याद आ गये जब घरों में कूलर भी नहीं होते थे- एयर-कंडिश्नरस की तो बात दीगर है; उन गर्मियों की ठँडी रातों में हम सभी भाई-बहन चारपाइयाँ छत पर डाल कर चदर तान (मच्छरों से बचने का अौर कोई उपाय था नहीं खुले में) कर सो जाते थे- कानों से ट्रांसिस्टर पर हवा-महल अौर भूले-बसरे गीत लगा कर; तारों से परिपूर्ण आकाश, मस्त ठँडी हवा अौर मधुर गीत- ये आाजकल की पौध की समझ से बाहर है ये आनन्द !
  • S.p. Singh धन्यवाद मनीष जी।
  • S.p. Singh राजन जी वाकई उन दिनों में गरमी इतनी होती नहीं थी या होती थी तो लगती नहीं थी।
    बाहर छत पर खटिया नहीं तो ऐसे ही जमीन पर सोने का अपना पन ही अलग हुआ करता था।
    आजकल के युवा लोगों को यह आनंद नहीं मिलेगा।
  • Amar Lal Pandya · 3 mutual friends
    अतिसुन्दर
    See Translation
  • S.p. Singh धन्यवाद महोदय।
  • SN Gupta आज की व्यथा का खूबसूरत सजीव चित्रण
  • Suresh Chadha Waha kya bat hae
    Purane dino ki yad aa gaye ab ye jinsgi sayad gaon tak simit he reh gaye hae .sir ji
    See Translation
  • Neeraj Saxena · Friends with Kaushal Kumar and 2 others
    Ati sunder
  • Anjani Srivastava सर सुप्रभात । ए जिंदगी इतनी बदसलूकी ना कर.......
    हम कौन सा बार-बार आयेँगे.....!!!
    See Translation
  • Anjani Srivastava सर, " गुरु पूर्णिमा की शुभकामनाएं"See Translation
  • Ram Saran Singh अब वो दिन केवल यादों में बसते है । हूक सी उठती है । लेकिन मानव स्वभाव समझौतावादी होता है । हर हालात में जी लेता है । बढ़िया लिखा है महोदय ।
  • Sandip Vashist Wah sahab
  • Manoj Kumar Singh अतिसुंदर।।। मेरे मन की भी यही अभिलाषा हैSee Translation
  • S.p. Singh सभी बन्धु बान्धवों को गुरु पूर्णिमा के पावन अवसर पर शत शत नमन।
  • S.p. Singh बहुत बहुत धन्यवाद मान्यवर।
  • Ishwar Dass bahut 2 badiya
  • Lalji Bagri sahi men lagta hai aap kavi hai,kya rachana karte hai,aapko sat sat naman
  • Sp Tripathi Multi-storey culture तो आने वाले वक़्त की ज़रूरत बन गई है । वर्तमान समय संन्धिकाल का है । इसलिए पीड़ा हमारी जेनरेशन को ही झेलना है । हाँ यह रचना आने वाले वक़्त में बीते हुए अच्छे दिन को जीवित रखेगी ।See Translation
  • Javed Usmani बहुत खूबसूरतSee Translation
  • Kapil Deo Sharma I can say strongly this poem is best one & heart touching poem among all .may Ma Saraswati bless u much more .............................
  • Kunwar Bahadur Singh new generation is sukh se vanchit rah jayegi. bahut hi marmik chitran...
  • Chhavi Gautam Sir,mere man ki baat.Inko kabootarkhaana bhi kaha ja sakta hai.
  • S.p. Singh Chhavi Gautam :

    मेरे मन में उठता है एक तूफान जो कहानी खुद ब खुद वयां करता है कुछ इस तरह:-

    जिक्र कल ही किया था हमने,
    नहीं भाते ये छोटे छोटे दबडे,
    दम घुटता है यहाँ मेरा,
    मेरा गाँव मुझे बुलाता है।

    मेरे फाजिल,
    दोस्त ने बस इतना कहा है, 
    कि इन दबडों को घर मैं कैसे कहदूं,
    जहां इनसान बसते हैं,
    हाँ, कबूतर खाना कह कर, 
    मेरा दिल उन्होंने दुखाया है।

    दोष उनको दूगां नहीं,
    किस्मत का है,
    जिसने मुझे यहां ला पटक के रखा है।

    चल यार चल वहां,
    जहां चैन बसता है,
    एक न एक दिन,
    मेरे यार,
    वहां सबको जाना है।
  • आशीष कैलाश तिवारी '........पेट भले ही भरता हो आधा, मन शांत बहुत रहता है, रहते सब हंस मिल कर, दिल में रहे ना कोई बाधा।'............!,,, Good MorningSee Translation
  • Rajan Varma जी हाँ शायद आप सही कह रहे हैं, सिँह साहब- ये फ्लैट्स आज के शहरों की अभिन्न माँग बन गई है- जगह कम अौर accomodation demand हद से ज़्यादा- फ़्लैट्स के अतिरिक्त, विकल्प ही क्या है आखिर; हमें इसे चाहते हुये या न चाहते हुये भी स्वीकार करना ही पड़ेगा- फ़िर चा...See More
  • S.p. Singh आप लोग सही कह रहे हैं, समझौते तो करने पडते हैं। शायद practical होना आवश्यक है।
    बहुत सुन्दर।धन्यवाद।
  • Umesh Chandra Srivastava Everyone accept the beauty of village life but no body has will to live in villages. I personally feel that if retired people start living in their village and start a small constructive work, villages may be changed.

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