Monday, July 14, 2014

मन तेज रफ्तार से दौड लगा रहा है

कलम से _ _ _ _

14th July, 2014

मन तेज रफ्तार से दौड लगा रहा है,
जितनी रास खींच रोकना चाहता हूँ, 
उतना ही और तेज भाग रहा है,
मन आज बहुत कुछ कहना चाह रहा है।

विचारों का गुब्बार उमड रहा है,
संतुलित मन न हो पा रहा है,
एकाग्रचित होना आवश्यक है
ऐसे में शून्य का सहारा ही,
लेना ही उचित प्रतीत होता है।

शून्य की ओर जाने लगा,
आखों में अधंकार छाने लगा,
मन एक बिन्दु पर ठहर गया,
जो न हो पा रहा था एक पल में हो गया।

मै और मेरा ईश्वर मिल गया,
चित्त स्थिर हो गया,
साधना जीवन में आवश्यक है,
बेलगाम घोडों को लगाम करने में,
इसकी बहुत जरूरत है।

शून्य की उत्पति से ही मानवता को संदेश मिला है,
सदभाव, सहयोग, शान्ति में ही सब का भला है।

surendrapal singh:

http://1945spsingh.blogspot.in/2014/07/blog-post.html
 — with Ram Saran Singh and 45 others.
Photo: कलम से _ _ _ _ 

14th July, 2014

मन तेज रफ्तार से दौड लगा रहा है,
जितनी रास खींच रोकना चाहता हूँ, 
उतना ही और तेज भाग रहा है,
मन आज बहुत कुछ कहना चाह रहा है।

विचारों का गुब्बार उमड रहा है,
संतुलित मन न हो पा रहा है,
एकाग्रचित होना आवश्यक है
ऐसे में शून्य का सहारा ही, 
लेना ही उचित प्रतीत होता है।

शून्य की ओर जाने लगा,
आखों में अधंकार छाने लगा,
मन एक बिन्दु पर ठहर गया,
जो न हो पा रहा था एक पल में हो गया।

मै और मेरा ईश्वर मिल गया,
चित्त स्थिर हो गया,
साधना जीवन में आवश्यक है,
बेलगाम घोडों को लगाम करने में,
इसकी बहुत जरूरत है।

शून्य की उत्पति से ही मानवता को संदेश मिला है,
सदभाव, सहयोग, शान्ति में ही सब का भला है।

surendrapal singh: 

http://1945spsingh.blogspot.in/2014/07/blog-post.html
  • Harihar Singh शान्ति मे ही सबका भला है ।अन्तिम सत्य यही है ।बहुत सुन्दर अभिव्यत्ति ।See Translation
  • Ram Saran Singh आज बहुत वर्षों बाद बढ़िया दार्शनिक विचार पढ़ने को मिला । मैनें 1977 में इलाहाबाद विश्वविद्यालय से दर्शनशास्त्र में एम ए किया था । लेकिन जीवन की भागम भाग में दर्शन कहीं खो गया है । आपके विचारों ने ताज़ा कर िदया । On attainment of complete renunciation only, Reality can be realised. Very nice thoughts. The vagabond mind can not achieve and feel god. Thanks.
  • Rajan Varma यही दर्शनशास्त्र का सार है- मन की वागें जितना खींचों उतनी ही यह बगावत करता है- every action has an equal and opposite reaction; फ़िर स्थिर करने का उपाय क्या है? शून्य अर्थात मन को एक बिन्दु- आँखों के पीछे तीसरा तिल- हमारे मन, आात्मा अौर चेतन सत्ता का केन्द्र- जहाँ ध्यान एकाग्र कर के मन शून्य में खो कर स्थिरता प्राप्त कर सकता है; ये कठिन साधना से ही संभव है; सही कहा आपने- शून्य की उत्पति से ही मानवता को संदेश मिला है- उत्तम प्रस्तुति है मानव-जीवन-दर्शन की; बधाई स्वीकार करें
  • S.p. Singh आप दोनों महानुभावों के विचारों से प्रभावित हुए वगैरे नहीं रहा जा सकता।
    मैं भी ज्ञानी ध्यानी लोगों की संगत में हूँ, तसल्ली है।
    बहुत बहुत धन्यवाद।
  • Kuldeep Singh Chauhan · 2 mutual friends
    Very good morning friends have a nice & enjoy full Sunday.
  • Ajay Jain Subah ka pranam mitrgan
  • S.p. Singh प्रणाम मित्रगण।
  • Rajan Varma इस जर्रानवाज़ी के लिये शुक्रिया, सर- ये जानते हुये भी कि मैं इस तारीफ़ के लायक नहीं हूँ, मैं नतमस्तक हो कर आपका आशीर्वाद स्वीकार करता हूँ
  • Suresh Chadha Suprabhatam miter jano ko
  • Sp Tripathi सुप्रभातम् ।।See Translation
  • Ajay Jain Singh sh. aaj aapne 14 July ku likha---???
  • S.p. Singh By mistake.
  • Ajay Jain me samjha ji ki zindgi ki Raftar kafi badh rahi he ji ---koi bat nahi ji
  • Ajay Jain ab mitro sone ka erada he yadi aap mitrgan izazat de to
    19 hours ago · Like · 1
  • Ajay Jain shubh ratri mitro----
    19 hours ago · Unlike · 2
  • Javed Usmani निहायत उम्दाSee Translation
    13 hours ago · Unlike · 2
  • S.p. Singh धन्यवाद जावेद भाई।
    12 hours ago · Like · 1
  • Sanjay Joshi बहुत खूब,,, शान्ति में सबकी भलाई,, सत्य... परम सत्य,,See Translation

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