Thursday, July 24, 2014

आज चंद टुकडे विलुप्त होते हुए जीव जंतु के लिए !


कलम से _ _ _ _

आज चंद टुकडे विलुप्त होते हुए जीव जंतु के लिए:-

तितली:-

तितली, रानी मनसुखिया सी न जाने कहाँ गई,
देखते देखते ही आखं से ओझल वो हो गई ।

नीलकंठ:-

नीलकंठ, देख हम पुचकार लिया करते थे,
इम्तिहान में अच्छे नम्बर आयें आस किया करते थे।

गौरैया:-

गौरैया, को नील गया मोबाईल का शोर,
चलता जिस पर नहीं किसी का अब जोर।

तोता:-

हीरामन, रह गये कहानी किस्सों में शेष
दिखते हैं हरे भरे पेडों पर कुछ अवशेष।

चीता:-

चीता, जंगल में दौडे रफ्तार आवाज की
नहीं दिखती दुर्लभ होती उसकी काया भी।

भवँरा:-

भ्रमर, गीत गाकर अब हर्षित कौन करेगा
फूलों से पराग उनके ले अब कौन उडेगा।

मोर-मोरनी:-

मोर, पग देख रोये मोरनी अश्रु पीकर हंस लेगी
इस धरा की सर्वोत्तम पक्षी को कौन रचेगी।

मैना:-

मैना, भी न जाने अब कहाँ चली गयी है
पपीहा पीहू पीहू कर अब न शोर करेगा।

कोयल:-

वदरा अपने आने की आहट जब न करेगें,
कोयलिया, फिर कैसे बोलेगी मुंह न अपना खोलेगी।

.................

और भी अनगिनत हैं जो लुप्त होते जा रहे
हम सभी आपनी असलियत खोते जा रहे।

//surendrapal singh//

07252014

http://1945spsingh.blogspot.in/2014/07/blog-post.html

and

http://spsinghamaur.blogspot.in/
 — with Puneet Chowdhary.

Photo: कलम से _ _ _ _

आज चंद टुकडे विलुप्त होते हुए जीव जंतु के लिए:-

तितली:-

तितली, रानी मनसुखिया सी न जाने कहाँ गई,
देखते देखते ही आखं से ओझल वो हो गई ।

नीलकंठ:-

नीलकंठ, देख हम पुचकार लिया करते थे, 
इम्तिहान में अच्छे नम्बर आयें आस किया करते थे।

गौरैया:-

गौरैया, को नील गया मोबाईल का शोर,
चलता जिस पर नहीं किसी का अब जोर।

तोता:-

हीरामन, रह गये कहानी किस्सों में शेष
दिखते हैं हरे भरे पेडों पर कुछ अवशेष।

चीता:-

चीता, जंगल में दौडे रफ्तार आवाज की
नहीं दिखती दुर्लभ होती उसकी काया भी।

भवँरा:-

भ्रमर, गीत गाकर अब हर्षित कौन करेगा
फूलों से पराग उनके ले अब कौन उडेगा।

मोर-मोरनी:-

मोर, पग देख रोये मोरनी अश्रु पीकर हंस लेगी
इस धरा की सर्वोत्तम पक्षी को कौन रचेगी।

मैना:-

मैना, भी न जाने अब कहाँ चली गयी है
पपीहा पीहू पीहू कर अब न शोर करेगा।

कोयल:-

वदरा अपने आने की आहट जब न करेगें,
कोयलिया, फिर कैसे बोलेगी मुंह न अपना खोलेगी।

 .................

और भी अनगिनत हैं जो लुप्त होते जा रहे
हम सभी आपनी असलियत खोते जा रहे।

//surendrapal singh//

07252014

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2 comments:

  1. विलुप्त प्राय: होते जीव-जंतुओं के प्रति जागरूक करती बहुत संवेदनशील प्रस्तुति

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  2. कविता जी आपका बहुत बहुत आभार।

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