Monday, July 14, 2014

एक कली गुलाब की, ख्वाबों को सजाने के लिए।

कलम से _ _ _ _

11th July, 2014

आते हुए से
शाम को
तोड ली थी
एक कली
गुलाब की,
ख्वाबों को सजाने के लिए।

ख्वाब जीने के लिए,
ख्वाब अपने,
मै खुद ही बनाता हूं,
खुद ही तोड लेता हूँ,
जानता हूँ कि
ख्वाबों के सहारे जिदंगी नहीं चलती,
फिर भी हसीन ख्वाब जिए जाता हूँ।

http://1945spsingh.blogspot.in/2014/07/blog-post.html
 — with आशीष कैलाश तिवारी and 47 others.
Photo: कलम से _ _ _ _

11th July, 2014

आते हुए से
शाम को
तोड ली थी
एक कली
गुलाब की,
ख्वाबों को सजाने के लिए।

ख्वाब जीने के लिए,
ख्वाब अपने,
मै खुद ही बनाता हूं,
खुद ही तोड लेता हूँ,
जानता हूँ कि 
ख्वाबों के सहारे जिदंगी नहीं चलती,
फिर भी हसीन ख्वाब जिए जाता हूँ।

http://1945spsingh.blogspot.in/2014/07/blog-post.html

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