Sunday, July 13, 2014

पुरवाई.....

आज मै आपको सहभागी बनाना चाहता हूँ अपने बचपन की उन यादों के साथ जिनके साथ मैने जीवन जिया है। हम लोगों मे से अधिकतर ग्रामीण अंचल से आते है वह मेरी भावनाओं को बेहतर समझ पायगे ।
कुछ दिन पहले ही हमलोगों ने 1882 मे कुवँर नागर जीत सिंह जी हमारे पूवॆजौ द्वारा निरमाणित भवन का जीणॆ उद्धार किया है।

कलम से...

पुरवाई.....

अबके गाँव जाना,
कुछ अजीब लग रहा था,
वैसे भी एक अरसे के बाद जाना मुमकिन हो पा रहा था ।

पुरवाई का एक,
झौका क्या आया,
गुजरा वक्त जो याद हो आया,
बचपन बिताया था,
जो यहाँ दादा-दादी के सहारे,
वो नहर के किनारे दूर तलक, जाने की रहती थी एक ललक,
थक जाने पर पाती बाबा के,
कंधे पर, घर वापस आना, लटक।

हर रात चाँद,
निकलता था हवेली के पिछवाडे से,
जूगनू गीत सुनाते थे,
पोखर ऊपर आते थे,
अम्मा की थपकी से हम सो जाते थे,
रातभर सुंदर सपने आते थे।

पुरवाई के एक झौके ने,
सारी यादों को जगा दिया,
नींद से मूझे कयंऔ उठा दिया,
सोता रहता तो अच्छा था,
सपनों मे खोया रहता,
वो अच्छा था।

पुरवाई के....
 — with SN Gupta and 9 others.
Photo: आज मै आपको सहभागी बनाना चाहता हूँ अपने बचपन की उन यादों के साथ जिनके साथ मैने जीवन जिया है। हम लोगों मे से अधिकतर ग्रामीण अंचल से आते है वह मेरी भावनाओं को बेहतर समझ पायगे ।
कुछ दिन पहले ही हमलोगों ने 1882 मे कुवँर नागर जीत सिंह जी हमारे पूवॆजौ द्वारा निरमाणित भवन का जीणॆ उद्धार किया है।

कलम से...

पुरवाई.....

अबके गाँव जाना,
कुछ अजीब लग रहा था,
वैसे भी एक अरसे के बाद जाना मुमकिन हो पा रहा था ।

पुरवाई का एक,
झौका क्या आया,
गुजरा वक्त जो याद हो आया,
बचपन बिताया था,
जो यहाँ दादा-दादी के सहारे,
वो नहर के किनारे दूर तलक, जाने की रहती थी एक ललक,
थक जाने पर पाती बाबा के,
कंधे पर, घर वापस आना, लटक।

हर रात चाँद,
निकलता था हवेली के पिछवाडे से,
जूगनू गीत सुनाते थे,
पोखर ऊपर आते थे,
अम्मा की थपकी से हम सो जाते थे,
रातभर सुंदर सपने आते थे।

पुरवाई के एक झौके ने,
सारी यादों को जगा दिया,
नींद से मूझे कयंऔ उठा दिया,
सोता रहता तो अच्छा था,
सपनों मे खोया रहता,
वो अच्छा था।

पुरवाई के....

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