Wednesday, July 23, 2014

छोटा एक पौधा, बडे वृक्ष के साये तले खडे रहने बडे होने की जद्दोजहद में मशगूल !

कलम से _ _ _ _

छोटा एक पौधा,
बडे वृक्ष के साये तले
खडे रहने
बडे होने की जद्दोजहद में मशगूल
कोशिश हर रोज है करता,
चंद सूर्य किरणें पहुंचे उसकी भी ओर
सिर उठाता, फिर झुक जाता
हार लेकिन नहीं मानता।

हा हा हा कर हंस लिया
फिर थोडा सा रो लिया,
बडा वृक्ष आखिर कहने लगा
वत्स निराश न हो
दिन तेरे भी आएगें
जब मेरे चुक जाएगं।

इंतजार कर मेरे बच्चे दुनियां में जो आया है
वह एक दिन जाएगा,
लेने उसकी जगह दूसरा कोई आएगा।

//surendrapal singh//

07232014

http://1945spsingh.blogspot.in/

and

http://spsinghamaur.blogspot.in/
 — with Puneet Chowdhary.
Photo: कलम से _ _ _ _

छोटा एक पौधा, 
बडे वृक्ष के साये तले
खडे रहने 
बडे होने की जद्दोजहद में मशगूल
कोशिश हर रोज है करता,
चंद सूर्य किरणें पहुंचे उसकी भी ओर
सिर उठाता, फिर झुक जाता
हार लेकिन नहीं मानता।

हा हा हा कर हंस लिया
फिर थोडा सा रो लिया,
बडा वृक्ष आखिर कहने लगा
वत्स निराश न हो
दिन तेरे भी आएगें
जब मेरे चुक जाएगं।

इंतजार कर मेरे बच्चे दुनियां में जो आया है
वह एक दिन जाएगा,
लेने उसकी जगह दूसरा कोई आएगा।

//surendrapal singh//

07232014

 http://1945spsingh.blogspot.in/

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  • Harihar Singh बहतरीनSee Translation
    13 hours ago · Unlike · 1
  • Deobansh Dubey सुमंगल रचना। सुप्रभात सर जी ।
    12 hours ago · Unlike · 1
  • Krishna Kumud Tewari मौलिकता के साथ-साथ काव्य लेखन में परिपक्वता की दस्तक का एहसास हम देख ही नहीं.. मससूस भी करने लगे हैं । हमें गर्व है कि हम.. आपकी लगन, मेहनत और ईमानदारी की तपस्या के साक्षात प्रशंसक हैं । एक और भावपूर्ण रचना के लिए... साधुवाद ।
    12 hours ago · Unlike · 2
  • Rajan Varma अति सुन्दर मुद्दा उठाया है सर- प्रथम तो ये कि अपना जन्म स्थान/परिवार मनुष्य के अपने हाथ में नहीं होता- जेसे छोटे पीधे का बीज जहाँ गिरा- ये उसके अधिकार-क्षेत्र से बाहर है- वहीं पनपना उसका भाग्य बन गया; दूसरा ये कि बावाजूद, इसके मनुष्य को अपना नेक-कर्म अौर निरंतर कोशिश ऊपर उठने की, नहीं त्यागनी चाहिये; अच्छे दिन ज़रूर आयेंगे- हॉ हॉ हॉ
    तीसरे ये कि जो आया है इक दिन आवश्य जायेगा- दरअसल जिस दिन मनुष्य पैदा हुआ उसी दिन उसकी टिकट पर गंतव्य स्थान की मुहर लग गई; जिस-जिस का गंतव्य स्थान आता जाता है वो जीवन-रेल से उतर कर महा-प्रयाण कर जाता है- शेष कतार-बद्ध हैं; प्रतीक्षा में अपने गंतव्य स्थान की- अौर कोई दूसरा उस रिक्त स्थान की पूर्ति कर देगा;
    यही विधि का विधान है- जो मैं समझ पाया
    12 hours ago · Unlike · 3
  • S.p. Singh तिवारी जी

    बहुत दिनों बाद प्रकट हुए हैं जरा जल्दी जल्दी आइए। बहुत दिन न दिखने पर दिल की धडकनें बढ़ जातीं हैं सामने रहते हैं तो सुकून होता है।
    आपका हम बहुत मान करते हैं जो आपने ही तो कहा था कि आप कलम से लिखए। तभी से "कलम से" हमने अपना ब्रांड बना लिया है। रजिस्ट्रार आफिस में दरख्वास्त नहीं लगाई है।
    आपकी टिप्पणी से प्रसन्नता हुई।
    हार्दिक धन्यवाद।
    12 hours ago · Like · 2
  • S.p. Singh राजन जी
    आपका तो जबाब नहीं।
    बहुत सुन्दर व्याख्या देकर कविता के मर्म को उजागर ही नहीं वरन इसे ऊचाईयों पर बिठा दिया है।
    आना जाना तो प्रकृति का नियम है हम वह तो करें जिसके लिए आए हैं।
    मुझे लगता है कि मैं लिखता रहूँ और आप लोगों तक कुछ अपनी बात आप तक पहुँचा सकूँ और जो ज्ञान अर्जित हो आप लोगों की प्रतिक्रयायें से उससे कोई आगे का मार्ग चलने में सक्षम हो सकूँ।
    बहुत सुन्दर विचार।
    12 hours ago · Edited · Like · 2
  • Suresh Chadha Suprabhatam ...sabi mitro ko
    Uttam Rachna ..Sirji
    See Translation
    12 hours ago · Unlike · 2
  • Krishna Kumud Tewari आभार सर जी... 'कलम से' शब्द को कालम की शक्ल में जीवन्त रखने के लिए । में आपकी लगभग प्रत्येक रचना का रसास्वादन कर रहा हूँ... शायद लाइक तक । कमेन्ट न कर सकना कुछ अकारण व्यस्तता रही । सर जी... आप प्यार और स्नेह से बस धड़कते रहिए.. हम आपके दिल के पास ही मिलेंगे...
    12 hours ago · Unlike · 3
  • Rajan Varma सादर आभार सिहँ साहब- आप सही कह रहे हैं हम सबका यही प्रयास होना चाहिये कि हम अपने जीवन को सार्थक करने के अपने जीवन के एक-मात्र उद्देश्य को हासिल करने के प्रयासों में लगे रहें- क्योंकि अन्तत: वही हमारे काम आने वाले हैं; बाकी सब तो फ़िजूल जमा-ख़र्च है- किसी गिनती में नहीं
    12 hours ago · Unlike · 4
  • BN Pandey RACHANA KI CHUND LINE ME GEETA KA UPDESH ..........SIR KYAA BAAT............AAP KI RACHANA TO DIN PER DIN ES TARAH GAMBHIR HOTI JAA RAHI HAI KI HUME DUR LAGATAA HAI HUM JAISE KUM BUDDHI WAALE AANE WAALE DINO ME KUCHH COMMENT DE BHI PAA SAKEGE.............SHUBH KAMNAAYE
    11 hours ago · Unlike · 3
  • S.p. Singh पाडें जी
    बस आप ऐसे ही अपने पन में सहभागी बनाए रहें।
    हाँ, हिन्दी में लिखें तो और भी चार चाँद लग जाएगें।
    11 hours ago · Like · 2
  • BN Pandey DHANYBAAD SIR..........MAI KHUD SHARMINDAGI MAHSOOSH KARATA HU KI APANI LIPI ME TYPE KARANE ME SUB ULTA= PULTAA HO JAA RAHAA HAI................ SHRI S.P.TRIPATHI SIR NE BHI MERE TIME LINE PER ESKA ZIKR KIYA HAI...........KAL HI MAINE SANKOCH KARATE KARATE UNKO BHI LIKHAA HU..........SIR ES KAMI KE LIYE TUB -TUK KSHAMAA PRAARTHI HU JUB TUK HUM SIKH N JAAYE.......AABHAAR
    11 hours ago · Unlike · 2
  • आशीष कैलाश तिवारी शुभ प्रभात sp सर।See Translation
    10 hours ago · Unlike · 1
  • S.p. Singh सुप्रभात भइय्या जी।
    10 hours ago · Like · 2
  • Puneet Chowdhary Sir one of your best poems perhaps.Beautiful description of life cycle of life which is inevitable for anyone.Very sensitive lines.I nominate u for OSCAR from my end for this excellent piece of creativity.From core of my heart i loved it.
    8 hours ago · Unlike · 3
  • S.p. Singh No, I don't deserve Oscar but surely need your support so that I may deliver the best yet to come from me. 
    Thanks again for your nice comments.
    8 hours ago · Like · 2
  • Ram Saran Singh बड़ा ही गंभीर दर्शन है । संसार में आवागमन का चक्र चलता रहेगा । लेकिन एक शिक्षा भी निहित है कि सबके दिन फिरते हैं । धन्यवाद सिंह साहब इस उच्च विचार से सनी रचना के लिए ।
    7 hours ago · Unlike · 2
  • S.p. Singh बहुत धन्यवाद सिहं साहब।आपने इस कविता को नया आयाम दिया।

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