Wednesday, July 16, 2014

आते जाते, गली के इस कोने से उस कोने तक निगाह एक जगह लगी रहती थी !



कलम से _ _ _ _


आते जाते
गली के इस कोने से उस कोने तक
निगाह एक जगह लगी रहती थी
वो खिडकी कब खुलेगी
उस दरवाजे से वो कब निकलेंगे।

ऐसा भी होता था
न कभी खिडकी
न कभी दरवाजा ही खुला करता था
समझ लेता था मैं कि वो नासाज हैं
या घर में किसी और की तबीयत खराब है।

इधर कुछ ऐसा हुआ
बहुत दिनों तक
कुछ न दिखा
न कोई रौनक
न कोई हलचल
मैं भीतर ही भीतर
बहुत बेचैन हुआ
पता जब किया तो
पता यह लगा
वो चले गये हैं दूसरे शहर
न लौटेगें इस रहगुजर।

सुन के
मैं सन्न रह गया
करता ही क्या
अफसोस में
हाथ मलता रह गया।

वो अचानक यूं चले गये
दुनियां मेरी वीरान कर गये
मानूंगा नहीं ढूढं ही लूगां
छिपे होगे चाहे तुम जहां
भक्त हूँ तुम्हारा
जाने न दूगां
तुम्हें इतने आसां...............................


//surendrapal singh//

07172014

http://1945spsingh.blogspot.in/2014/07/blog-post.html

and

http://spsinghamaur.blogspot.in/with आशीष कैलाश तिवारी and 45 others.

2 comments:

  1. Replies
    1. बहुत बहुत धन्यवाद उत्साह वर्धन के लिए महोदय।

      Delete