कलम से____
हर दिन पहाडी के पीछे से तुम आते हो
काम अधिक करने हैं संदेश कानों में दे जाते हो।
मनवा मेरा पागल है तैयारी काम की करता है
टूट जाता है एक बिखरा स्वपन सा लगता है।
है कहाँ काम बचा जो था भी वह सब खत्म हुआ
बरबादी चहुँओर हई है सबकुछ तबाह है हुआ
शिव के तांडव से पर्वत ध्वस्त हुआ आस्था का दीप है बुझा
आशा टूटी फूटी किस्मत ले कहाँ जाऊँ काम कहां से मैं लाऊँ।
//surendrapal singh//
http://spsinghamaur.blogspot.in/
हर दिन पहाडी के पीछे से तुम आते हो
काम अधिक करने हैं संदेश कानों में दे जाते हो।
मनवा मेरा पागल है तैयारी काम की करता है
टूट जाता है एक बिखरा स्वपन सा लगता है।
है कहाँ काम बचा जो था भी वह सब खत्म हुआ
बरबादी चहुँओर हई है सबकुछ तबाह है हुआ
शिव के तांडव से पर्वत ध्वस्त हुआ आस्था का दीप है बुझा
आशा टूटी फूटी किस्मत ले कहाँ जाऊँ काम कहां से मैं लाऊँ।
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