कलम से ___
चंद रोज पहले ही जिक्र उनका महफिल में हुआ था
खिलती हुई कली हैं यूँ किसी ने बडे अदब से कहा था।
कली से फूल खुदारा वो इक दिन बनेगें
कत्ल निगाहों से न जाने कितने करेगें।
चढती जवानी के आलम की क्या बात है
शहर में हर जुबां पर उनका ही नाम है।
दिन हरेक के पलटते हैं मेरा भी एक होगा
उस दिन का इंतजार हम तहेदिल से करेगें।
खुदा मेहरबान रहे वो हमारे इक दिन बन के रहेगें
खुली बाहों में आके के समा जाने की हम राह तकेगें।
//surendrapal singh//
08 07 2014
http://1945spsingh.blogspot.in/ — with Puneet Chowdhary.
चंद रोज पहले ही जिक्र उनका महफिल में हुआ था
खिलती हुई कली हैं यूँ किसी ने बडे अदब से कहा था।
कली से फूल खुदारा वो इक दिन बनेगें
कत्ल निगाहों से न जाने कितने करेगें।
चढती जवानी के आलम की क्या बात है
शहर में हर जुबां पर उनका ही नाम है।
दिन हरेक के पलटते हैं मेरा भी एक होगा
उस दिन का इंतजार हम तहेदिल से करेगें।
खुदा मेहरबान रहे वो हमारे इक दिन बन के रहेगें
खुली बाहों में आके के समा जाने की हम राह तकेगें।
//surendrapal singh//
08 07 2014
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